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________________ (१३१) [ षष्ठ परिच्छेद कनक है, जो कृनक होता है वह परिणामी होता है जैसे कुम्भ; यहाँ । 'शब्द परिणामी है' या 'कुम्भ कृतक है' इस प्रकार कहना ॥ और इसी अनुमान में इमलिए शब्द कृतक है' अथवा 'इसलिए घट परिणामी है' ऐमा कहना निगमनाभास है। विवेचन-पक्ष में हेतु का दोहगना उपनय कहलाता है । हेतु को न दोहग कर किसी और को दोहगना उपनयाभास है। जैसे उक्त उदाहरण 'शब्द परिणामी है' यहाँ पक्ष में साध्य को दोहराया गया है और 'कुम्भ कृतक है' यहाँ पर सपक्ष ( दृष्टान्त ) में हेतु दोहराया गया है, अतः यह दोनों उपनयाभास है। पक्ष में साध्य का दोहराना निगमन है । और पक्ष में साध्य को न दोहरा कर, किसी को किमी में दोहरा देना निगमनाभास है। जैसे यहाँ पक्ष (शब्द ) में एक जगह कृतकत्व हेतु को दोहरा दिया है और दूसरी जगह मपक्ष (कुम्भ ) में साध्य को दोहराया है। इस लए शब्द परिणामी है' ऐमा कहना निगमन होता किन्तु 'इमलिए शब्द कृतक है' 'इसलिए कुम्भ परिणामी है' ऐसा कहना निगमनाभास है। भागमाभास अनाप्तवचनप्रभवं ज्ञानमागमाभासम् ॥ ८३ ॥ अर्थ-अनाप्त पुरुष के वचन से उत्पन्न होने वाला ज्ञान भागमाभास है। विवेचन-आगम और प्राप्त का स्वरूप पहले कहा जा चुका है। यथार्थ ज्ञाता और यथार्थवक्ता पुरुष को कहते हैं । जो श्राप्त न हो वह अनाप्त है। अनाप्त के वचन से होने वाला ज्ञान भागमाभास है।
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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