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________________ (१११) [ षष्ठ परिच्छेद था। उस ज्ञान से ऋषि को सान द्वीप-समुद्रों का ज्ञान हुआ-आगे के द्वीप-समुद्र उन्हें मालूम नहीं हुए। तब उन्होंने यह प्रसिद्ध किया कि मध्यलोक में सिर्फ सात द्वीप और सात समुद्र है, अधिक नहीं। ऋषि के इस विभंग ज्ञान का कारण मिथ्यात्व था। अतएव यह उदाहरण अवधिज्ञानाभास का है । मनःपर्याय ज्ञान और केवलज्ञान के आभास कभी नहीं होते, क्योंकि यह दोनों ज्ञान मिथ्यादृष्टि को नहीं होते। स्मरणाभास अननुभूते वस्तुनि तदिति ज्ञानं स्मरणाभासम् ॥३१॥ अननुभूते मुनिमण्डले तन्मुनिमण्डलमिति यथा ॥३२॥ अर्थ-पहले जिसका अनुभव न हुआ हो उस वस्तु में 'वह' ऐसा-ज्ञान होना स्मरणाभास है ।। जैसे—जिस मुनि-मण्डल का पहले अनुभव न हुश्राहो उसमें 'वह मुनिमण्डल' ऐसा ज्ञान होना ॥ विवेचन--जिस मुनिमंडल को पहले कभी नहीं जाना-देखा, उसका 'वह मुनि-मंडल' इस प्रकार स्मरण करना स्मरणाभास है। क्योंकि स्मरणज्ञान अनुभूत पदार्थ में ही होता है। प्रत्यभिज्ञानाभास तुल्ये पदार्थे स एवायमिति, एकस्मिश्च तेन तुल्य इत्यादि ज्ञानं प्रत्यभिज्ञानाभासम् ॥ ३३ ॥ यमलकजातवत् ।। ३४ ॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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