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________________ प्रमाण-नय-तत्त्वालोक] (६६) कारपरित्यागोपादानावस्थानस्वरूपपरिणत्याऽर्थक्रियासामर्थ्यघटनाच ॥२॥ अर्थ--सामान्य विशेष रूप पदार्थ प्रमाण का विषय है, क्योंकि वह अनुगन प्रतीति ( सदृश ज्ञान ) और विशिष्टाकार प्रतीति ( भेद-ज्ञान ) का विषय होना है। दूसरा हेतु-क्योंकि पूर्व पर्याय के विनाश रूप, उत्तर पर्याय के उत्पाद रूप और दोनों पर्यायों में अवस्थिति रूप परिणति में अर्थक्रिया की शक्ति देखी जाती है। .. विवेचन--जिन पदार्थों में एक दृष्टि से हमें सदृशता-ममानता की प्रतीति होती है उन्हीं पदार्थों में दूसरी दृष्टि से विसदृशतःविशेष की प्रतीति भी होने लगती है । दृष्टि में भेद होने पर भी जब तक पदार्थ में सहशता और विसदृशता न हो तब तक उनकी प्रतीति नहीं हो सकती । इमसे यह सिद्ध है कि पदार्थ में मदृशता की प्रतीति उत्पन्न करने वाला सामान्य है और विसदृशता की प्रतीति उत्पन्न करने वाला विशेष धर्म भी है। इसके अतिरिक्त पदार्थ पर्याय रूप से उत्पन्न होता है, नष्ट होता है, फिर भी द्रव्य रूप में अपनी स्थिति कायम रखना है। इस प्रकार उत्पाद. व्यय और ध्रौव्य मय होकर ही वह अपनी क्रिया करता है। यहाँ उत्पाद-व्यय पदार्थ की विशेषरूपता सिद्ध करते हैं और धोव्य सामान्य रूपता सिद्ध करता है। ___ इन दोनों हेतुओं मे यह स्पष्ट होजाता है कि सामान्य और विशेष दोनों ही वस्तु के धर्म हैं। सामान्य का निरूपण सामान्यं द्विप्रकारं-तिर्यक्सामान्यमूर्खतासामान्यश्च ॥३॥
SR No.022434
Book TitlePramannay Tattvalok
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachandra Bharilla
PublisherAatmjagruti Karyalay
Publication Year1942
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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