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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। ___ अब इहां नैयायिक बोलै है; जो सर्वज्ञपणांकी तौ सिद्धि भई परंतु आवरणके अभावतें सर्वज्ञपणां है यह नाही बण है, शरीर इन्द्रिय लोक आदि ये कार्य हैं तिनिके निमित्तपणांकरि सर्वज्ञकी सिद्धि होय है । बहुरि इहां शरीर आदि कार्यनिका होनां बुद्धिवान पुरुषकरि किये होय है सो असिद्ध नांही है जाते अनुमान प्रमाण आदिकतैं इह नीकै प्रसिद्ध होय है, सो ही कहिये है, ताका प्रयोग करै है-नांही निश्चयमैं आये-विवादमैं आये जे पृथिवी पर्वत वृक्ष शरीर आदिक सो कोई बुद्धिवान पुरुषके रचे हैं तिस हेतुक हैं जातें ये कार्यरूप हैं कार्य होय सो किया विना होय नाही । बहुरि इनिका उपादान अचेतन है । बहुरि इनिका संनिवेश कहिये आकारादिकी रचनां सो भलै प्रकार है ऐसे आकारादिक बुद्धिमान पुरुष विना होय नाही जैसे वस्त्र आदिका बनावनेवाला कारीगर तिनिकी यथास्थान रचना बनावै तैसैं ये भी काहू. बनाये हैं । बहुरि आगम भी तिस सर्वज्ञका प्रतिपादक सुनिये है, सो वेदका वचन है-' विश्वतश्चक्षुः' कहिये सर्व तरफ जाके नेत्र हैं---समस्तकू देखै है, ' उत विश्वतो मुखः' कहिये सर्व तरफ जाका मुख है, बहुरि · विश्वतो बाहुः' कहिये सर्व तरफ जाका भुजानिका व्यापार है, 'उत विश्वतः पात् ' कहिये सर्व तरफ जाके पग हैं-सर्व व्यापक है, बहुरि ‘संबाहुभ्यां धमति' कहिये पुण्य पाप सर्वकू जोडै है--सर्व प्राणीनिकै पुण्य पापका संयोग करै है, ऐसा 'संपतत्रैः द्यावा. भूमी जनयन् देव एकः', कहिये एक देव ईश्वर है सो पृथिवी आकाशकू परमाणूनिकरि उपजावता संता व” है । बहुरि व्यासका वचन ऐसा १-विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतः पात् सम्बाहुभ्यां धमति सम्पतत्रै-वाभूमी जनयन् देव एकः॥ हि. प्र. ५
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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