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________________ ६२ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित पुरुषपणांका सर्वज्ञ विना अयोग है । बहुरि पुरुषपणां सामान्य है सो - सन्दिग्धविपक्षव्यावृत्तिक है असर्वज्ञपणांका विपक्ष सर्वज्ञपणां सो कोई पुरुषमैं होय भी तातैं विपक्षतें व्यावृत्ति संदेहरूप है । ऐसें सकल पदा'र्थका साक्षात्कारपणां कोई पुरुषकै सिद्ध होय है इस अनुमान यातैं पांच प्रमाणका विषय सर्वज्ञ नांही ऐसैं कहना अयुक्त है । I बहुरि असर्वज्ञवादी कहै है— जो इस अनुमानविषै सामान्य सर्वज्ञपणां सिद्ध भया सो यह सर्वज्ञपणां अरहंतकै है कि अन्यकै है ? जो कहोगे अन्य जे बुद्ध आदि तिनिकै है तौ अरहंतके वाक्य अप्रमाण ठहरेंगे । बहुरि कहोगे अरहंतके है तौ आगम करि सामर्थ्यकरि अथवा स्वशक्ति कहिये अविनाभावी लिंगपणां ताकरि अथवा ताका दृष्टान्तका अनुग्रह करि तिस हेतुतैं अरहंतकौं सर्वज्ञ जाननेका असमर्थपणां है जातैं हेतुकै अन्यपक्ष जो बुद्धादिक तिनिविषै भी समानवृत्ति है, जैसें हेतुतैं अरहतकै साधिये तैसैं ही बुद्ध आदिकै भी सिद्ध होयगा । ऐसें असर्वज्ञवादी मीमांसक आदिक कहैं । सो यह कहनां भी तिनिकै अपनें घातकै अर्थि कृत्य कहिये करतूति तथा शस्त्रविशेष तथा मारीका उठावनां है जातैं ऐसैं पूछनां है सो तौ सर्वज्ञसामान्यका मानपूर्वक है । सो सर्वज्ञ सामान्य मान्यां तब अपनी पक्षका घात भया । अर जो सर्वज्ञसामान्य न मानिये तौ काढूहीकै सर्वज्ञपणां नांही है ऐसें ही कहनां । बहुरि प्रसिद्ध अनुमानवि भी इस दोषका संभवकरि जातिनामा दूषणरूप उत्तर होय है, सो ही कहिये है; जैसें काहूनें अनुमान किया जो शब्द नित्य है जातैं प्रत्यभिज्ञानकरि जान्या जाय है, ऐसें कहनें तें जातिवादी कहै है— शब्दकूं व्यापकरूप नित्य साधिये है कि अव्याप-रूप नित्य साधिये है ? जो अव्यापकरूप नित्य साधिये है तौ व्यापकपणां करि मान्यां जो शब्द सो किछू भी अर्थं पुष्ट नांही करे है. -
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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