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________________ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितहैं जो ज्ञेय होय सो कारण होय तौ ऐसैं कहे केशनिका झूमका आदिकरि व्यभिचार होय है सो पूर्वै कह्या ही था काहूके मस्तक परि मांछर उ. थे सो काहूकू केशनिका झूमका दीख्या सो ते मांछर ज्ञानके कारण न भये ॥ १०॥ आगैं अब अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष जो मुख्य प्रत्यक्ष ताहि कहै है; सामग्रीविशेषविश्लेषिताखिलावरणमतीन्द्रियमशेषतो मुख्यम् ॥११॥ ___ याका अर्थ-सामग्री जो द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावलक्षण ताका विशेष जो सर्वकी पूर्णता-एकता मिलनां ताकरि दूरि भये हैं अखिल कहिये समस्त आवरण जाके ऐसा, बहुरि अतीन्द्रिय कहिये इन्द्रियनिकू उलंघि वत्ते, बहुरि अशेषतः कहिये समस्तपणांकरि विशद कहिये स्पष्ट ऐसा ज्ञान मुख्य प्रत्यक्ष है ॥ ११ ॥ ___ इहां कोई पूछ समस्तपणांकरि विशदपणांविर्षे कहा कारण है ? ताकू कहिये-ज्ञानका प्रतिबंध जो कर्म ताका अभाव कारण है हम ऐसे करें हैं । फेरि पूछे तहां भी कहा कारण है ? ताकू कहिये अतीन्द्रियपणां है अर अनावरणपणां है ऐसैं कहैं हैं फेरि पूछे यह भी काहेरौं है ? ताका समाधानकू सूत्र कहै है;सावरणत्वे करणजन्यत्वे च प्रतिबंधसंभवात् ॥१२॥ ___ याका अर्थ-जो ज्ञानकै आवरणसहितपणां होय अर इंद्रियजन्यपणां होय तौ प्रतिबंध संभवै तातै निरावरण अतीन्द्रिय होय सो ही मुख्य प्रत्यक्ष है । इहां कोई कहै कि अवधि मनःपर्यय ज्ञानका इस सूत्रकरि ग्रहण न भया ता” यहु लक्षण अव्यापक है ? ताकू आचार्य कहै है-ऐसैं न कहना तिनि दोऊनिकै भी अपने विषयवि समस्तपणांकरि विशदपणां आदि धर्म संभव है । बहार ऐसैं मति-श्रुतज्ञानकै
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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