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________________ ५४ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितनियत जो जो जिस ज्ञानका अर्थ होय सो ही विश्य ताकू व्यवस्थापै है । तहां अपना आवरण तिनिका क्षय कहिये उदयका अभाव बहुरि तिनिहीका सत्ता अवस्थारूप उपशम ये दोऊ हैं लक्षण जाका ऐसी जो योग्यता सो यह तौ कारणरूप है ताकरि प्रतिनियत जो अर्थ ताहि स्थापन करै है-अपना विषय करै है सो ज्ञान प्रत्यक्षप्रमाण है ऐसा सूत्रमैं वाक्य शेष है । बहुरि ' हि ' शब्द है सो ' यस्मात् ' अर्थमैं है तातें ऐसा अर्थ भया जो जातैं ऐसैं है तातै बौद्ध आशंका करी थी जो प्रतिनियत अर्थकी व्यवस्था न होगी सो ऐसा दोष नाही है । इहां यह तात्पर्य है जो तादूय कहिये तदाकारपणां अर तदुत्पत्ति कहिये तिस” उपजनां अर तदध्यवसाय कहिये तिस स्वरूप अर्थका निश्चय ये तीनूं कल्पिकरि भी योग्यता अवश्य मानने योग्य है, इस विना तीनूं ही व्यभिचारसहित हैं । सो ही दिखाइए हैं;-ताद्रूप्यकै समान अर्थकरि व्यभिचार है जो ज्ञान तदाकारपणांत उपजै सो जिस पदार्थतें उपजै तिस समान अन्यपदार्थकू तिसकाल क्यों जानै नांही सो पदार्थ भी तौ तिसही आकार है, यह ही व्यभिचार। बहुरि तदुत्पत्तिकै इन्द्रियआदिकरि व्यभिचार है, इन्द्रियतै उपजै है अर इन्द्रियनिकू तिसकाल क्यों नांही जानैं, यह ही व्यभिचार । बहुरि तिनि दोऊनिकै भी समान अर्थ समनंतर प्रत्ययनिकरि व्यभिचार है, पहिले क्षण जैसैं नीलका ज्ञान भया सो दूसरे क्षण सो ज्ञान तिस नील ज्ञानका उपजावनहारा है अर तिसतैं तदाकार भी है अर पहले क्षणका ज्ञानकू क्यों जानैं नाही यह ही व्यभिचार । बहुरि ताद्रूप्य तदुत्पत्ति, तदध्यवसाय, इनि तीनिकै धोला शंखकै विर्षं पीलेका ज्ञान होय तहां व्यभिचार है, काहूके नेत्रवि. कामला रोग था ताळू धौला शंख पीला दीख्या तहां धोला आकारकरि पीला आकारका ज्ञान उपज्या । बहुरि जो तदाकार ज्ञान अर
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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