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________________ ३६ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित ताका समाधान आचार्य करै है; — जो यह कह्या सो बाल कहिये अज्ञानी ताका विलास सारिखा भासै है जातैं जो वार्त्ता कही सो उपपत्तितैं शून्य है — बणती न कही । सो ही कहिये हैं; इहां दोय पक्ष पूछिये जो परोक्षकै प्रमाणपणां निषेधै है सो याके उत्पत्तिके कारणके अभावतैं निषेधै है कि आलंबनके अभावतैं निषेधै है ? तहां प्रथम तौ पहला पक्ष जो उत्पादक कारणका अभाव सो तौ नांही बणै है जातैं याका उत्पादक कारण सुनिश्चित भई जो साध्यतैं अन्यथा अनुत्पत्ति ताका नियमका निश्चय सो है लक्षण जाका ऐसा जो साधन कहिये हेतु ताका सद्भाव है । बहुरि दूजा उत्तरपक्ष जो आलंबनका अभाव सो भी नांही है जातैं याका आलंबन जो अग्नि आदिक सो समस्त जे विचार करनें विषै चतुर है चित्त जिनिका तिनिकै सदाकाल प्रतीतिमैं आवै है, अग्निकं आलंब्यकरि अनुमान उपजै सो आलंबनका अभाव कैसैं कहिये । अर जो स्वभावहेतुकै व्यभिचारकी संभावना कही सो भी अयोग्य है जातैं स्वभावमात्र ही हेतु नांही होय है, जो व्याप्यरूप स्वभाव होय सो व्यापक प्रति गमक होय है सो ही हेतु होय यातैं व्याप्यकै व्यापकतैं व्यभिचार नांही है, जो व्यभिचार होय तौ वह व्याप्य ही न कहिये । इहां अन्य विशेष कहैं हैं; — जो ऐसैं अनुमानकूं व्यभिचारी कहकर उत्थापन करनेवाला जो चार्वाक ताकै प्रत्यक्ष प्रमाण भी नांही ठहरैगा, तहां भी अविसंवादपणां अर मुख्यपणां ये दोऊ ही अनुमान विना निश्चय नांही होगा जात प्रमाणपणांकै अर अविसंवादकपणांकै तथा मुख्यपणांकै अविनाभावीपणां है सो अनुमान मान्यां विना कैसे निश्चय होय, प्रमाणका सत्यार्थपणां तौ अनुमान ही करे है । बहुरि जो कार्यनामा हेतु भी व्यभिचार बताय अन्यथाका संभावन किया सो भी विना विचारयां किया, नीकेँ विचारया परीक्षारूप किया कार्य सो.
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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