SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित कैसै वर्णै ? ताकू आचार्य कहै है-ऐसैं न माननां जाते इनि दोऊनिकै ज्ञानस्वभावकार अभेद होतें भी व्याप्यव्यापक जो धर्म तिनिका आधारपणां करि भेदभी वणै है, जैसैं शीघ्र नामा वृक्ष है ताकै शीघ्र पणांकै वृक्षपणांतें अभेद होतें भी व्याप्यव्यापक धर्मके आधारपणांकार भेद वण है । भावार्थ-व्यापककै तौ व्याप्य बहुत है बहुरि व्याप्यकै सो व्यापक एक ही है, तहां व्यापककू तौ गम्यसंज्ञा कही है अरु व्याप्यकू गमकसंज्ञा कही है, सो इहां व्यवसायस्वरूप ज्ञान तौ व्यापक है जारौं यथार्थनिश्चयात्मक जो प्रमाण ताविर्षे भी वर्ते है अरु अन्यथानिश्चयात्मक जो विपर्यय ज्ञान तामैं भी वर्ते है । बहुरि समारोपका विरोधीपणां है सो यथार्थनिश्चयात्मक ज्ञान विषं ही प्रवत्र्त है, विपर्ययवि. नांही है तातें भेद है; जैसैं वृक्षपणां तौ सर्व वृक्षनिमैं वत्त है सो व्यापक है बहुरि शीतूंपणां शीघ्र वृक्षविषै ही व” है तातें व्याप्य है, तातै शीतूंपणां तौ वृक्षविर्षे गमक भया अर वृक्षपणां शीतूंकै गम्य भया, ऐसा जननां तातें साध्यसाधनभाव वणै है। बौद्धमती प्रत्यक्ष प्रमाणाका लक्षण कल्पनारहित अभ्रांत ऐसा कहै है, ताकू अविसंवादस्वरूप कहैं हैं, अर्थक्रियाहीतैं कहैं हैं, वस्तुका प्राप्त करनेवाला कहैं हैं, याहीकू वस्तुका प्रवर्तक कहैं हैं, अपने विषयका दिखावनेवाला कहैं है, वस्तुविर्षे निश्चय उपजावनहारा कहैं हैं सो ऐसा तौ व्यवसायात्मक विशेषण किये ही बगैंगा। बहुरि अनुमानकू बौद्धमती सविकल्प सामान्यमात्रविषयस्वरूप कहैं हैं ताकू इहां दृष्टांत कीया है जो जैसैं अनुमानकू निश्चयस्वरूप सविकल्प मानें हैं तैसैं प्रत्यक्षकू भी मानों, सर्वथा निर्विकल्पकै प्रमाणपणां वर्णं नाही । बहुरि इहां समारोपका विरोधी कह्या सो विरोध तीनप्रकार होय है, एक तौ सहानवस्थानलक्षण, जहां दोऊ विरोधी एकठे हैं नांही जैसैं प्रकाश अरु अंधकार । बहुरि दूजा परस्परपरिहारलक्षण, जैसे
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy