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________________ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचितकथन करिये है । बहुरि संबंध है सो अर्थका सामर्थ्यहीनैं आया जातें या प्रकरणकै अरु प्रमाण प्रमाणाभासरूप अभिधेयकै वाच्यवाचक है लक्षणजाका ऐसा संबंध प्रतीतिमैं आवैही है। बहुरि प्रयोजन शक्यानुष्ठानरूप अरु इष्टरूप है सोभी आदि श्लोककरिही लखिये है, जातै प्रयोजन दोय प्रकार है एक साक्षात् , दूजा परंपरा। तहां इस श्लोकमैं 'वक्ष्ये' ऐसा पद है सो या पदकरि साक्षात् प्रयोजन कहिये है जातें संशय विपर्ययरहित शास्त्रका ज्ञान होनेरौं शिष्यजन देखि लैंगे, शिष्यजननिहीकू विचारि करि कहनेकी प्रतिज्ञा करी है सो यही साक्षात् प्रयोजन है; बहुरि परंपराप्रयोजन अर्थका ज्ञान तथा प्राप्ति है सो आदि श्लोकमैं 'अर्थसंसिद्धि' ऐसा पद है ताकरि कह्या, जातैं शास्त्रके ज्ञानकै अनंतर अर्थका ज्ञान तथा प्राप्ति होयगी ऐसैं जाननां । फेरि तर्क-जो समस्त विघ्नके नाशकै आर्थ इष्टदेवताका नमस्कार शास्त्रकी आदि विषं चाहिये सो इस प्रकरणके कर्त्तानैं न किया सो कहा कारण ? ___ ताका समाधान;-आचार्य कहै है जो ऐसैं न कहनां, जातॆ नमस्कार मन अरु कायकरि भी संभव है तातें ऐसैं जानूं मन करि अरु कायकरि शास्त्रके प्रारंभ करतें कर लिया होयगा। बहुरि वचनकरि नमस्कारभी इस आदि वाक्यकरि जाननां, जातें केई वाक्य ऐसे हैं जिनका दोय आदि अर्थभी देखिये हैं; जैसैं काहूनैं कह्या 'श्वेतो धावति' ऐसे वाक्यके दोय अर्थ होय हैं, एक तौ ऐसा जो 'श्वा' कहिये कूकरा (कुत्ता) -सो 'इतः'कहिये या तरफ 'धावति' कहिये दोडै है । बहुरि दूजा अर्थजो श्वेत कहिये धोला गुणयुक्त कोई दोडै है । ऐसे दोय अर्थकी प्रतीति है । तहां आदिके वाक्यकै विर्षे नमस्काररूप अर्थभी है, सोही कहिये हैं;-तहां अर्थ कहिये हेयोपादेयरूप वस्तु ताकी संसिद्धि कहिये यथार्थ
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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