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________________ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदाभासाद्विपर्ययः । इति वक्ष्ये तयोर्लक्ष्म सिद्धमल्पं लघीयसः ॥ १॥ याका अर्थ-प्रमाण” अर्थकी संसिद्धि होय है, बहुरि प्रमाणाभास” अर्थकी संसिद्धि नाही होय है-विपर्यय होय है। या हेतु” मैं ग्रंथकर्ता हूं सो तिस प्रमाणका अरु प्रमाणाभासका लक्षण कहूंगा । टीका-अहं कहिये मैं ग्रंथकर्ता माणिक्यनंदिआचार्य हूं सो तल्लक्ष्म कहिये प्रमाण अर तदाभास इनि दोऊनिका लक्षण है ताहि वक्ष्ये कहिये कहूंगा। सिद्धं कहिये पूर्वाचार्यनिकरि प्रसिद्ध किया सो ही। बहुरि कैसा ? अल्प कहिये थोरे अक्षरनिकरि कहने योग्य अरु अर्थतें महान् । बहुरि कौनकू विचारि करि कहूंगा? अतिशय करि लघु जे शिष्यजन तिनिकू विचारि करि । इहां लघुपणां बुद्धिकृत ग्रहण करना, शरीरपरिमाणकृत न लेणां, जातें छोटे शरीरवालेहू बड़े बुद्धिवान होय है, बहुीर अवस्थाकृत भी न लेणां जाते छोटी अवस्थावालेभी केई बड़े बुद्धिवान होय हैं, तातै जिनिमैं बुद्धि थोड़ी होय ते इहां लघुशब्दकरि ग्रहण करनें। इहां लक्षणका तौ स्वरूप ऐसा जाननां-जो बहुत वस्तु एकठी मिलिरही होय तिनिमैंसूं जुदी करनेका जो किछु वस्तुमैं प्रसिद्ध चिह्न होय सो लक्षण होय । बहुरि सिद्ध विशेषणतैं अपनीही रुचि करि नाही कीया पूर्वै कह्या तिसही अर्थरूप है ऐसा जनाया है। बहुरि अल्प कहनेते यामैं थोरे अक्षरनिमैं ही अर्थ बहुत है ऐसें याका निष्प्रयोजनपनां निषेध्या है। यह प्रमाण तदाभासका लक्षण कौंन हेतु” कहिये है जातें अर्थ जो जानने योग्य वस्तु ताकी संसिद्धि कहिये प्राप्ति होनां अथवा जाननां ये दोऊ प्रमाणतें होय हैं यातें । बहुरि केवल प्रमाणते अर्थकी संसिद्धि होय है, ऐसाही नांहीं है प्रमाणाभासतें अर्थसंसिद्धिका अभावभी होय है यारौं दोऊहीका लक्षण कहनां । बहुरि इति
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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