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________________ TOS । 9000 ANDRONAL ACHERSAR स्वर्गीय पंडित जयचंदजी विरचित हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । दोहा। श्रीमत वीरजिनेश रवि तम अज्ञान नशाय । शिवपथ वरतायो जगति वंदौं मैं तसु पाय ॥ १ ॥ माणिकनंदिमुनीशकृत ग्रंथ परीक्षाद्वार । करूं वचनिका तासकी लघुटीका अनुसार ॥२॥ ऐसैं मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करी । अब परीक्षामुखनाम संस्कृतसूत्रबंध माणिक्यनंदिआचार्यकृत ग्रंथ है ताकी बड़ी टीका तो प्रमेयकमलमार्तडनाम है सो प्रभाचन्द्र आचार्यकृत है, तामैं तौ विशेष करि वर्णन है । बहुरि छोटी टीका प्रमेयरत्नमाला है सो लघु अनन्तवीर्य आचार्यकृत है ताकै अनुसार मैं देशभाषामय वचनिका लिखू हूं। तामैं बुद्धिकी मंदतातें तथा प्रमादसे कहूं हीनाधिक अर्थ लिख्या होय तौ पंडितजन हास्य मत करियो, मूलग्रंथ देखि शुद्ध करलीजियो । इहां कोई कहै जो प्रमाणके प्रकरण तौ संस्कृतवचनरूपही चाहिये, देशभाषामय वचन" हीनाधिक कहनां वणै तो विपर्यय होनेरौं बड़ा दोष लागै । ताका समाधान-जो यह तो सत्य है देशभाषाके वचन अपभ्रंश बहुत हैं तहां अर्थ विपर्ययरूपभी भासै परन्तु कालदोषौ संस्कृतके पढ़नेवाले विरले हैं, अर केई हैं ते भी गुरुसंप्रदायके विच्छेद
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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