SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित समवायेतिप्रसङ्ग ॥ ७२ ॥ याका अर्थ—समवाय संबंध होतें अतिप्रसंग आवै है। भावार्थसमवाय तौ नित्य है अर एक है व्यापक है सर्व आत्माकै समवाय तौ समान धर्म है ता” यह इसहीका समवाय है ऐसा प्रतिनियम नाही तारौं अतिप्रसंग आवै है ॥ ७२ ॥ आगैं स्वपरपक्षका साधन दूषणकी व्यवस्था दिखाएँ हैं; प्रमाणतदाभासौ दुष्टतयोद्भावितौ परिहृतापरिहतदोषौ वादिनः साधनतदाभासौ प्रतिवादिनो दूषणभूषणे च ॥७३॥ याका अर्थ-वादीनैं प्रमाण अर प्रमाणाभास स्थापे तिनिकू प्रतिवादी दूषणसहित किये अर फेरि वादी ताका दोषका परिहार किया तथा परिहार न किया तौ ते दोऊ वादीकै साधन अर साधनाभास हैं अर प्रतिवादीकै दूषण अर भूषण दोऊ हैं । इहां ऐसा अर्थ है-वादी प्रमाण स्थाप्या प्रतिवादी ताकू दूषण दिया फेरि वादी तिस दोषका परिहार किया तौ सोही वादीकै साधन है अर प्रतिवादीकै दूषण है । बहुरि जो वादी प्रमाणाभास कह्या अर प्रतिवादी ताकू प्रमाणाभास दिखाया फेरि वादी ताकू स्थाप्या नांही प्रतिवादीका वचनका परिहार न किया तौ तिस वादीकै सो साधनाभास है अर प्रतिवादीकै सो ही भूषण है ॥ ७३ ॥ . आगैं कह्या प्रकारकरि समस्त विप्रतिपत्तिका निराकरणद्वार करि पूर्वै प्रमाणतत्व कहनेंकी प्रतिज्ञा करी थी ताकी परीक्षा करि अब नय. आदिका स्वरूप अन्य शास्त्र प्रसिद्ध है सो तहांतें विचारनां, ऐसैं दिखावता संता सूत्र कहैं हैं;
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy