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________________ १७६ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित wwwmmmmmmmmmmmmmmmmm णकू दृष्टान्त मेचक ज्ञान अनेकवर्णाकार वस्तुके जाननेंकू कया है। बहुरि सामान्य विशेष ऐसे जो जो ही गऊपणां अपनी व्यक्तिनिकी अपेक्षा सामान्य, सो ही महिष आदिकी अपेक्षा विशेष, ऐसे दृष्टान्तकरि व्यतिकर दूषण नाही । इहां कहै---जो मेचकज्ञान विर्षे तौ जैसा वस्तुमैं अनेकवर्णाकार था तैसा प्रतिभासै है, तो ताकू कहिये इहां हमारै भी जैसी वस्तु है ताका तैसाही प्रतिभास होहु, ताका पक्षपातका अभाव है । बहुरि जैसा वस्तु है ताका तैसा निर्णय भया तहां संशय नाही युक्त है, संशय तो चलितज्ञानरूप है, अचल प्रतिभासवि. संशय बनैं नाही । बहुरि जो वस्तु प्राप्त भया सिद्ध भया ताकै विषै अप्रतिपत्ति कहनां यह तौ अतिधीठपणां है । बहुरि जाकी उपलब्धि होय तहां अनुपलंभ भी नांही सिद्ध है तारौं अभाव भी नांही । ऐसैं इनि दूषणनि” रहित प्रत्यक्ष अनुमान प्रमाणकरि अविरुद्ध अनेकांतात्मक वस्तुका कहनेवाला अनेकान्तमत है सो सिद्ध है। इस ही कथन करि अवयव अवयवीकै गुण गुणीकै कर्म कर्मवान्कै कथंचित् भेद है कथंचित् अभेद है सो कहे जानने । अब नैयायिक कहै है—जो समवायके वश” भिन्न पदार्थ विर्षे भी अभेदकी प्रतीति है जाकै ब्रह्मतुल्य ज्ञान न उपज्या ताकै, भावार्थ—जाकै अतीन्द्रिय ज्ञान नाही ताकै भिन्न पदार्थ विर्षे भी समवायतें अभेदका ज्ञान है। ताकू आचार्य कहैं हैं—जो ऐसैं नाही जातै समवाय भी पदार्थ भिन्न ही है ताके स्थापनेकी असमर्थता है । सो ही कहिये है—इहां दोय पक्ष हैं, समवायकी वृत्ति है सो अपना समवायी पदार्थनिविर्षे वृत्ति सहित है, कि वृत्तिरहित है ? जो कहै वृत्तिसहित है तौ तहां भी दोय पक्ष करैं हैं, जो यह वृत्ति आपही करि वृत्तिसहित है कि अन्यवृत्ति करि है ? जो कहैआपही करि है तो यह पक्ष तौ नाही वणें है, समवायविधैं अन्य
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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