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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला | १६१ 1 कहे । तिनिका वर्णन वंध्या के पुत्रका सुरूपपणांका वर्णन सरीखा है याका विषय असत्यार्थ है, तातैं आदरनें योग्य नांही । प्रकृतितैं कार्यकी उत्पत्ति वर्णै नांही । आकाश तौ अमूर्त्तीक है अर पृथ्वी आदि मूर्तीक हैं तिनिकैं एक कारणतैं उपजनेका अयोग है । जो ऐसैं न मानिये तौ अचेतन जो पंचभूतका समूह तातैं चैतन्यकी सिद्धि होय, तब चार्वाकमतकी सिद्धिका प्रसंग आवै । तब सांख्यमतका बास भी न रहै । बहुरि सत् कार्यवाद सांख्य करे है ताका प्रतिषेध " प्रमेयकमलमार्त्तड ' ग्रंथविषै विस्तारकरि का है, सो इहां नांही कहिये है, या ग्रंथकै संक्षेपपरूपणां है यार्तै; ऐसैं जाननां । ऐसें विचार किये सामान्यमात्रही प्रमाणका विषय ब नांही इहां तांई सांख्यमतीसूं चरचा है । आगैं सांख्य आदि सामान्यहीकूं तत्त्व कहैं हैं तैसें बौद्धमती कहैं -जो विशेष ही तत्त्व है, वस्तुस्वरूप है, ये ही प्रमाणका विषय है जाते तिनिकै असमान आकारनिकरि सामान्य आकारनितैं समस्तपणां करि भिन्नस्वरूपपणां है, भावार्थ - विशेष हैं ते सामान्यतैं सर्वथा भिन्न ही हैं । नैयायिक सामान्यकूं सर्वथा एक मानैं है सो ऐसे एक सामान्यकैं अनेक विशेषनि विषै व्याप्ति करि वर्त्तनके संभवका अभाव है । एक सामान्य अनेक विशेषनिमैं कैसैं व्यापै । तिस सामान्यकै एक व्यक्ति विषै समस्तपणां करि तिष्ठनां पावै तिस ही काल अन्य व्यक्ति विषै पावनेंका अभावका प्रसंग आवै है । बहुरि जो कहिये - तिस ही काल अन्यव्यक्ति विषै भी पाइए है तौ सामान्य नाना ठहरै जातैं एक ही काल भिन्नदेशपणांकरि तिष्ठते जे व्यक्ति तिनिविषै समस्तपणाकरि जैसैं व्यक्ति न्यारे न्यारे हैं तैसैं सामान्य भी न्यारे न्यारे पावैं । बहुरि जो ऐसें होतें भी सामान्यकै नानापणां न होय तौ व्यक्ति भी न्यारे न्यारे मति होहु । तातें जो बुद्धि करि अभेद मानिये है सो ही सामान्य हि. प्र. ११ 1
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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