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________________ www हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। अर्थ जाननेंमें न आया ऐसे हैं ? जो कहेगा—उत्तर पक्ष है अर्थ जाननेमैं न आया ऐसे हैं तौ तिनिकै अज्ञानस्वरूप अप्रमाणताका प्रसंग आवैगा । बहुरि कहैगा आद्यका पक्ष है जो अर्थ जाननेमैं आया ऐसे हैं तौ पूछिये तिनिका व्याख्यान करनेवाला अल्पज्ञ है कि सर्वज्ञ है ? जो कहैगा-अल्पज्ञ है तौ जिनि वेदवाक्यनिका संबंध कठिन है जाननेमैं न आवै तिनिका अर्थ अन्यथा भी होय जाय तब मिथ्यात्वस्वरूप अप्रमाणपणां होय । सो ही कही है, ताका श्लोकका अर्थ-मेरा यह अर्थ है अर यह नाही है ऐसा शब्द ही तो आप कहै नाही, पुरुष ही शब्दका अर्थ कल्पै हैं अर पुरुष हैं ते रागादि दोषनिकरि दूषित हैं । इहां विशेष ऐसा जो अल्पज्ञका कह्या अर्थमैं विशेष नाही, ताक् काहू. कह्या जो वेदका वचन है “अग्निहोत्रं जुहुयात् स्वर्गकामः" ताका अर्थऐसा जो स्वर्गका इच्छुक पुरुष है सो अग्निहोत्रनैं होमै । तब काहू. कह्या-याका यह अर्थ नाही, याका अर्थ ऐसा है—जो अग्नि है ऐसा श्वानका नाम है ताका होत्र कहिये मांस सो 'जुहुयात्' कहिये खाय जो स्वर्गका इच्छुक होय सो तथा अग्नि ऐसा नाम ही श्वानका है ताका होत्र कहिये मांस सो खाय ऐसा भी अर्थ क्यों न होय । ये अर्थ अल्पज्ञके कहे कहिये तो ऐसे ही सर्व ही अर्थ अल्पज्ञके कहे हैं ते प्रमाण कैसैं होहिं । अथवा यामैं संशय उपजै जो याका कैसा अर्थ है तब अप्रमाणपणां आवै । बहुरि दूसरा पक्ष जो--वेद सर्वज्ञकरि जान्यां अर्थ रूप है सो ही अनादिपरंपरानै चल्या आवै है, तो धर्म जे १-तदुक्तम् अयमर्थो नायमर्थ इति शब्दा वदन्ति न । . कल्प्योऽयमर्थः पुरुषैस्ते च रागादिविप्लुताः॥१॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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