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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला ! १२७ नामा कार्यकू अवश्य निपजावै ऐसी अग्निका प्रतिषेध है सो साध्य है। इहां धूमनामा कार्य दीखै नाही, यह हेतु अग्निके प्रतिषेधकू साधै है । तारौं कार्यानुपलब्धिनामा हेतु भया ॥ ७६ ॥ आगैं कारणका अनुपलंभकू कहैं हैं; नास्त्यत्र धूमोऽनग्नेः ॥ ७७॥ याका अर्थ-इस जायगां धूम नांही है जाते अग्नि नाही है । इहां अग्नि धूमका कारण है सो ताकी अनुपलब्धि” धूमका प्रतिषेध साध्या है, तातैं कारणानुपलंभ हेतु भया ॥ ७७ ॥ __ आगें पूर्वचरकी अनुपलब्धिकू कहैं हैं; न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृत्तिकोयानुपलब्धेः ॥ ७८॥ याका अर्थ-मुहूर्त्तके अंतमैं रोहिणीका उदय न होसी जातें कृत्तिकाका उदयकी अनुपलब्धि है, नांही दीखै है । इहां मुहूर्त्तके अंतमैं रोहिणीका उदयका प्रतिषेध साध्य है ताका कृत्तिकाके उदयका अनुपलंभ पूर्व चरानुपलब्धि हेतु है ॥ ७८ ॥ आगें उत्तरचरकी अनुपलब्धिकू कहैं हैं;नोदगाद्भरणिर्मुहूर्तात्प्राक्तत एव ॥७९॥ याका अर्थ-मुहूर्त पहली भरणि नाही उगी है जातें कृत्तिकाका उदयकी अनुपलब्धि है । इहां मुहूर्त पहली भरणिके उदयका प्रतिषेध साध्य है ताका कृत्तिकाका उदयकी अनुपलब्धि हेतु है सो उत्तरचरानुपलब्धि हेतु भया ॥ ७९ ॥ आU सहचरकी अनुपलब्धिका अवसर है, सो कहै है;नास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धेः॥८॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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