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________________ १०८ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित और उदाहरणकी अपेक्षा होते अनवस्था दूषण होय है, सो ही सूत्रमैं कहैं हैं;. व्यक्तिरूपं च निदर्शनं सामान्येन तु व्याप्तिस्तत्रापि तद्विप्रतिपत्तावनवस्थानं स्यादू दृष्टान्तान्तरापेक्षणात् याका अर्थ-निदर्शन कहिये उदाहरण सो तो व्यक्तिरूप है जिस साध्यसाधनकै जोड़िये तहां ही लागै, बहुरि व्याप्ति है सो सामान्य करि है सर्व साध्यसाधनमैं व्यापै है, सो एक उदाहरणते व्याप्तिका निश्चय नाही होय तहां दूसरी जायगां उदाहरणकै विर्षे भी तिस व्याप्तित साध्यसाधन जोड़िये तब अन्य दृष्टांत चाहिये ऐसैं अन्य दृष्टांतकी अपेक्षा करनेंतें अनवस्था होय है ॥ ३५॥ आज तीसरा विकल्पविर्षे दूषण कहै है;नापि व्याप्तिस्मरणार्थ तथाविधहेतुप्रयोगादेव तस्मृतेः ॥ ३६॥ __ याका अर्थ-यह उदाहरण व्याप्तिके स्मरण कहिये यादि करनेकै अर्थि नाही है जाते अविनाभावस्वरूपहेतुके प्रयोग करनेंहीरौं तिस व्याप्तिका स्मरण होय है । ग्रह्या है साध्यतै संबंध जानें ऐसा पुरुषकै हेतु दिखावनेंहीकरि व्याप्तिकी सिद्धि होय है । जानें संबंध न ग्रह्या होय ताकै सौ दृष्टांतकरि भी स्मरण न होय जातें स्मरण तौ पहली अनुभव होय ताहीका होय है, ऐसा भावार्थ है ॥ ३६॥ ___ आगें ऐसैं सो इस उदाहरणके प्रयोगकै साध्य पदार्थ प्रति उपयोगीपणां नांही है उलटा संशयका कारणपणां ही है ऐसैं दिखावै है; तत्परमभिधीयमानं साध्यधर्मिणि साध्यसाधने संदेहयति ॥ ३७॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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