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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । १०५ बहुरि किछू विशेष कहै है; जो हेतुका प्रयोग करिये है ताका समर्थन भी अवश्य है-कहने योग्य होय है जाते विना समर्थन हेतुपणांका अयोग है, ऐसे होते समर्थनका प्रयोगते ही हेतुकै सामर्थ्य सिद्धपणां होय तब हेतुका प्रयोग भी अनर्थक ठहरै है। इहां कहै-जो हेतुका प्रयोग न करिये तो समर्थन किसका कहिये ? तौ ताकू कहियेजो पक्षका प्रयोग न करिये तौ हेतु किसका कहिये ? ऐसे यह प्रश्नोत्तर समान है। तातै कार्य, स्वभाव, अनुपलंभ, ऐसे तीन भेदकरि हेतुडूं कहता तथा पक्षधर्मपणां आदेि तीन प्रकार हेतुकू कहकरि ताका समर्थन करता जो बौद्धमती ताकरि पक्षका प्रयोग भी अंगीकार करने योग्य ही है । इहां भावार्थ ऐसा-जो बौद्धमती अनुमानका प्रयोग करता व्युत्पन्न पंडितकै एक हेतु ही मानें है, ताकू कह्या है जो पक्षका वचन भी मानने योग्य है जातै पक्ष कहे विना साध्य जा ठिकानें साधिये तामै सन्देह रहै तौ पक्षके वचन विना दूर होय नाहीं । बहुरि हेतुका समर्थन बौद्ध करै है-ताकू चेत कराया जो जा हेतुका समर्थन हेतु कह्या तब पहला हेतु तौ पक्ष ही भया सो पक्षका प्रयोग निषेध किये हेतुका भी प्रयोग अनर्थक ठहरै है, समर्थन ही कहनां युक्त ठहरै है । तातै पक्षका ही वचन पहले क्यों न कहनां, ऐसें जाननां ॥३०॥ ___ आगें इस ही अर्थके कहनेकू सूत्र कहै हैं; को वा त्रिधा हेतुमुक्त्वा समर्थयमानो न पक्षयति ॥३१॥ याका अर्थ-'को वा' कहिये वादी प्रतिवादी ऐसा कौन है जो तीन प्रकार हेतुकू कहकरि अर ताका समर्थन करता संता तिस हेतुडूं पक्ष न करे, करै ही करै । इहां 'को' ऐसा कहने” वादी प्रतिवादी कोई लेनां । बहुरि 'वा' शब्द है सो निश्चय अर्थमैं है, सो युक्तिकरि
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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