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________________ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित इहां अन्यवादी दूषण कहै है-जो इष्टकू साध्य कहे आसन शयन भोजन यान मैथुन इत्यादिक भी इष्ट हैं ते साध्य ठहरै हैं ? ताकू आचार्य कहै है-ऐसी कहनेवाले अतिमूर्ख हैं जारौं विना अवसर कहनेवालाकै अतिप्रलापीपणां है, इहां तौ साधनका अधिकार किया है जो साधनका विषय होय ताकी अपेक्षा इहां इष्ट कह्या है ॥१५॥ आगें आपनैं कह्या जो साध्यका लक्षण ताके विशेषणनिकू सफल करते संते प्रथम ही असिद्ध विशेषणकू दृढ़ करने• सूत्र कहैं हैं; सन्दिग्धविपर्यस्ताव्युत्पन्नानां साध्यत्वं यथा स्यादित्यसिद्धपदम् ॥१६॥ याका अर्थ-सन्दिग्ध विपर्यस्त अव्युत्पन्न इनिकै साध्यपणां जैसे होय इस हेतु” साध्यका असिद्धपदरूप विशेषण है । तहां काहू क्षेत्रमैं अंधकार आदिके निमित्ततें खड़ा पदार्थ देखि विचारै जो यह स्थाणु है कि पुरुष है ? ताका निश्चय न होय ज्ञान दोऊ तरफ स्पर्शता रहै ऐसैं संशयकरि व्याप्त जो वस्तु सो तो संदिग्ध है । बहुरि सत्यार्थ” विपरीत वस्तुका निश्चय करनेवाला जो विपर्यय ज्ञान ताका विषयभूत जो वस्तु जैसैं सीपविौं रूपेका ज्ञान तहां रूपा आदि विपर्यस्त वस्तु है । बहुरि नाम जाति संख्या आदि विशेषनिका ज्ञान विना जो अनिर्णीत विषयरूप वस्तु निश्चय विनां ग्रहण करनां जाका होय सो वस्तु अव्यु. त्पन्न है यह अनध्यवसायज्ञानका विषय जाननां । इनि तीननिकै साध्यपणां कहनेंकै अर्थि असिद्धपदका ग्रहण है, ऐसा अर्थ जाननां ॥१६॥ ___ आगैं अब इष्ट अर अबाधित इनि दोऊ विशेषणनिका सफलपणां दिखावते संते सूत्र कहैं हैं;
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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