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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । ९१ याका समर्थन यह-जो जब दूरि देश जाय तब जानिये चाले है, ऐसे अनुमान दृढ़ होय है । ऐसैं ही अन्यत्र जाननां ॥ ८ ॥ आगैं अनुमान अनुक्रममैं आया ताका लक्षण कहैं हैं; - साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् ॥ ९ ॥ याका अर्थ — साधन कहिये हेतु तातैं साध्य कहिये साधनें योग्य जो वस्तु ताका विज्ञान होय सो अनुमान प्रमाण है ॥ ९ ॥ आर्गै साधनका लक्षण कहैं हैं ; साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ॥ १० ॥ याका अर्थ — साध्यतैं अविनाभावीपणांकरि जो निश्चय किया होय सो हेतु कहिये । इहां बौद्धमती कहै है— जो हेतुका लक्षण तीनरूपपणा ही है ताके होतैं ही हेतुकै असिद्ध आदि दोषका परिहार बर्णै है, सोही कहिये है; - प्रथम तौ हेतु पक्षका धर्म होय तब असिद्धपणां दोषका परिहार होय तातैं ताकै अर्थ हेतुकूं पक्षधर्मरूप कहिये । बहुरि सपक्षविषै जाका सत्व होय सो विरुद्धपणांका निराकरणकै अर्थ है । बहुरि विपक्षविषै जाका असत्व होय सो अनैकान्तिकके निषेधकै अर्थि है, ऐसैं तीनरूप हेतु कहै, सो ही कहिये है —- श्लोकका अर्थ – दिग्नागनामा बौद्धमतका आचार्य हेतुकै तीन रूपनिविषै निर्णय वर्णन किया है जातैं ये तीन रूप असिद्ध विरुद्ध व्यभिचारी जे हेतु सदूषण तिनिके प्रतिपक्षी हैं । ताका समाधान आचार्य करै है; जो यह कहनां अयुक्त है जातैं अविनाभावका नियमका निश्चय होतैं तीनूं दोषनिका परिहार बर्णै है, अविनाभाव है सो साध्यविनां न बणनां है । इस अ -- १ - हेतोत्रिष्वेपि रूपेषु निर्णयस्तेन वर्णितः । असिद्ध विपरीतार्थव्यभिचारिविपक्षतः ॥ १ ॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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