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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला। ८१ अनुमान कैसे होयगा । बहुरि ब्रह्मवादी कहै है-जो अनादि अविद्याके उदयतें यह सर्व असंबद्ध है ? तहां आचार्य कहै है-यह कहनां भी महा-अज्ञानका विलास है जातें अविद्याविर्षे भी पहिले कहे जे दोष तिनिका प्रसंग है । बहुरि कहै—जो अविद्या सर्वविकल्पनि” रहित है तारै दोष नाही आवै है सो यह कहनां भी अतिमुग्धका वचन है जारौं अविद्याका कोई ही रूपकरि प्रतिभासका अभाव होते तिसका स्वरूप ही अवधारण मैं आवे नाही । बहुरि और भी इहां विस्तार करि विचार है सो देवागमस्तोत्रका अलंकार जो अष्टसहस्री ताविपैं है तातें इहां विस्तार न कीजिये है । बहुरि समस्त भेदनिकै विवर्त्तपणां कह्या, तहां एकरूपकरि अन्वयपणां हेतु है सो अन्वय करनेवाला अर अन्वीयमान कहिये जाका अन्वय करिये सो वस्तु इनि दोऊनिकरि अविनाभावीपणांकरि पुरुषाद्वैतकू निषेधै है यातें अपनां इष्ट जो अद्वैतब्रह्म ताका विघातकारीपणांतॆ विरुद्ध है। बहुरि अन्वितपणां है सो एक हेतुक जे घट आदिकविर्षे अर अनेक हेतुक जे स्तंभ कुंभ कमल आदिवि दोऊविषै पाइये हैं तातें अनैकान्तिक हैं। बहुरि पूछिये-जो यह अद्वैत ब्रह्म हैं सो जगतनामा कार्य कौन अर्थि करै है, तहां च्यार पक्ष है;-एक तौ अन्यका प्रेरया करै, दूसरे कृपाके वश” करै, तीसरां क्रीडाके वश करै, चौथे स्वभावही” करै। तहां जो कहैअन्यका प्रेरया करै है तो स्वाधीनपणांकी हानि भई अर द्वैतका प्रसंग भया । बहुरि कृपाके वशतें करनां कहै तो कृपाविषै दुःखिनिका तौ न करनेका प्रसंग आवै जगतमैं दुःखी हैं ही अर तिसकै कृपाका करणा तौ परके उपकार करनेंतें बगैं, बहुरि सृष्टि रचे पहली प्राणी है नाही तिनिकी कृपा अर्थि नवीन सृष्टि रचै तो कृपाकै अर्थि रचनां युक्त होय, बहुरि कृपावि तत्पर होय ताकै प्रलयका विधान युक्त होय नाही, हि. प्र. ६
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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