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________________ हिन्दी प्रमेयरत्नमाला । लोक है सो तिस ब्रह्मके आराम कहिये विवर्त्तरूप पर्यायनिकू देखै है तिसकू कोई न देखै है ऐसा वेदका वचन सुनिये है । इहां कोई पूछे -परमब्रह्मकै ही परमार्थ सत्त्व होतें घट आदिका भेद भासै है सो कैसे है ? सो ऐसा तर्क इहां नाही करनां जाते सर्व ही घट आदि वस्तु हैं ते तिसके विवर्त्तपणांकरि भासे हैं जैसे दर्पणकै विर्षे प्रतिबिंब भासे है तैसें है । एक ही वस्तुके अपरमार्थरूप अनेक प्रतिबिंब भासै सो विवर्त्त कहिये । बहुरि सर्व ही भेद हैं तिनिकै ब्रह्मका विवर्त्तपणां असिद्ध नांही जात प्रमाणकरि सिद्ध होय है, ताका प्रयोग-विवादमैं आया जो विश्व लोक सो एक कारणपूर्वक है जातें एकरूपते जुड़ि रह्या है, जैसैं घड़ा हांडी ढांकणां डीबा आदिक हैं ते मांटीस्वरूप हैं तारौं अन्वयरूप हैं सो ये मांटीनामा कारणपूर्वक ही हैं तैसैं सत्रूप करि जुड़े सर्व वस्तु हैं। तैसैं ही आगम भी ताका साधक है; ताका श्लोकका अर्थ-जैसैं मांकड़ी है सो जालाके तंतूनिका एक कारण है अथवा जैसे जलका चंद्रकांतमणि कारण है अथवा जैसैं कुंपलनिका बडवृक्ष कारण है तैसैं सर्व जीवनिका एक ब्रह्म कारण है, ऐसैं ब्रह्मवादीने अपना मत दृढ़ किया । ___ अब ताईं आचार्य कहै है-हे ब्रह्मवादी ! यह तेरा कहनां जैसैं मदिराका रसकू पानकरि गदगद वचन कहै तैसा है अथवा मांचणां कोदूं खायकरि गहला होय मूर्ख विलास करै-यथा कथंचित् कहै तैसा है जातें यह विचारमैं आवै नांही-परीक्षामैं न आय सके है । जाते जो प्रत्यक्षकै सत्ताविषयपणां कह्या तहां दोय पक्ष पूछिये है;-निर्विशेषसत्ताविषयपणां कया कि विशेषसहित १-ऊर्णनाभ इवांशूनां चद्रकांत इवांभसाम् । प्ररोहाणामिव प्लक्षः स हेतुः सर्वजन्मिनाम् ॥१॥
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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