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________________ ७६ स्वर्गीय पं० जयचंदजी विरचित है सो विपक्षकू साध्या तब कारणविशेष जो ईश्वर ताकी सिद्धि भई तातै विरुद्ध भया । बहुरि कारणविशेषकी अपेक्षा कहै तो इतरेतराश्रयनामा दूषण आवै, कारणविशेष जो बुद्धिमान ताकी सिद्धि होते तौ तिसकी अपेक्षाकरि कारणव्यापारानुविाधयित्वस्वरूप कार्यत्व सिद्ध होय अर तिसतै ताके विशेषकी सिद्धि होय ऐसैं इतरेतराश्रय भया । ___ बहुरि इहां संनिवेशविशिष्टपणां अर अचेतन-उपादानपणां ये दोऊ भी हेतु हैं ते कहे जे दोष तिनकरि दुष्ट हैं-निधि नाही, तातै न्यारे नांही विचारे हैं । संनिवेशविशिष्ट तौ सुख आदिवि नांही वत्तै तातै भागासिद्ध है, सुख आदि कार्य तौ है अर रचनाविशेषरूप नाही है । बहुरि अचेतनोपादानपणां ज्ञानस्वरूप कार्यविर्षे नाही ताभागासिद्ध है, ज्ञान कार्यरूप तो है अर अचेतनोपादानरूप नाही ऐसैं भागासिद्धनामा दूषण तहां भी सुलभ है । बहुरि ये हेतु विरुद्ध हैं जाते दृष्टांतके अनुग्रह कहिये घट आदि दृष्टांतका बल ताकरि शरीररहित सर्वज्ञपूर्वक साधन किया है अर घटका कर्ता कुंभकार है सो शरीरसहित असर्वज्ञ है तातें हेतु विरुद्ध होय है। बहुरि कहैजो ऐसें तौ धूमतें अग्निका अनुमान कीजिये तामैं भी यह दोष आवैगा सो दोष नाही आवै है जारौं तहां तृणकी अग्नि तथा पान आदिकी अग्नि सर्व ही अग्निमात्रविर्षं व्याप्त जो धूम सो देखिये हैं तैसैं इनि हेतुनिमैं नाही देखिये हैं जो सर्वज्ञ तथा असर्वज्ञ जो कर्ताका विशेष ताका आधार जो कर्त्तापणां सामान्य तिसकरि कार्यत्वनामा हेतुकी व्याप्ति है ऐसैं नाही देखिये है अर सर्वज्ञ जो कर्ता ताकी इस अनुमान पहले असिद्धि है, इस ही अनुमानकरि कर्ता साधिये है। बहुरि यह हेतु व्यभिचारी है बुद्धिवान कारण विना भी विजली आदि कार्य प्रकट होय है । बहुरि सूता आदि पुरुषकी अवस्थाविधैं बुद्धिपूर्वक विना भी कार्य
SR No.022432
Book TitlePramey Ratnamala Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages252
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size15 MB
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