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________________ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् - यद्यसत्सर्वथा कार्य तन्मा जनि खपुष्पवत् । मोपादाननियामोऽभून्माश्वासः कार्यजन्मनि ॥४२॥ अर्थ—जो कार्य है सो सर्वथा असत् ही उपजै है ऐसैं मानिये तो वह कार्य आकाशके फूलकी तरह मत होहु । बहुरि उपादान आदिक कार्यके उत्पन्न होनेकू कारण हैं तिनका नियम न ठहरै । बहुरि उपादानका नियम न ठहरै तब कार्यके उपजनेका विश्वास न ठहरै । जो इस कारणनै यही कार्य नियमकरि उपजैगा । जैसे यवं अन्न उपजनेका यवबीज ही है ऐसा उपादान कारणका नियम होय तिस कारण” सो ही कार्य उपजनेका विश्वास ठहरै सो क्षणिकएकान्तपक्षमैं असत् कार्य मानें तब यह नियम न ठहरै ॥ ४२ ॥ ऐसैं होतें क्षणिकएकान्त पक्षविर्षे अन्य दोष आवै हैं सो कहैं हैं न हेतुफलभावादिरन्यभावादनन्वयात् । - संतानान्तरवनैकः सन्तानस्तद्वतः पृथक् ॥४३॥ - अर्थ-क्षणिकएकान्तपक्षविर्षे हेतुभाव अर फलभाव, आदि शब्दतें वास्य कहिये वासनायोग्य, वासक कहिये वासना लेने वाला, बहुरि कर्म अर कर्मफलके संबन्ध अर प्रवृत्ति आदि ये भाव नाही संभ हैं । जातें ये भाव अन्वय विना होय नाहीं । जैसैं भिन्न अन्य संतान है तैसैं संतानी भी भिन्न ही हैं, ते भी अन्यसंतानकी तरह हैं । बहुरि संतानी जे क्षण तिनतें भिन्न अन्य संतानकी ज्यौं संतान किळू वस्तु है नाही तिन संतान निकी एकताहीकू संतान कहिये है । ऐसैं अन्यभावतें अन्वय विना हेतुफलभाव आदिक न बनें। संतान संतानीकै अन्वय होय सो ही सत्यार्थ संतान है तिसहीकै हो” हेतुफल भावादिक बनैं हैं ॥४३॥ आगैं फेर क्षणिकवादीके वचनका उत्तर आचार्य कहैं हैं
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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