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________________ आप्त-मीमांसा | ३५ 1 आगैं अद्वैतवादी कहैं कि हम ब्रह्म- अद्वैत मानें हैं सो प्रमाण सिद्ध भया मानैं हैं । तहां अनुमान प्रमाण तौ ऐसा है जो प्रतिभास मैं नाना वस्तु हैं सो प्रतिभासस्वरूप भयें प्रतिभास मैं प्रवेशरूप ही हैं जैसें प्रतिभासका स्वरूप है, तैसें ही ते नाना हैं, सुख प्रतिभासै हैं, रूप प्रतिभासै है ऐसैं है या मैं कछू बाधा नाहीं है । बहुरि आगम जो वेद तातें भी ऐसा ही सिद्ध होय है जातैं भेद है । वेद मैं ऐसा कह्या है-ब्रह्मशब्दकरि समस्त वस्तु कहिये हैं । बहुरि वेदके जो उपनिषद वचन हैं तिन मैं ऐसा कहा है- जो यह ग्राम आराम आदिक सर्व हैं ते सर्व ब्रह्म हैं नाना किछू भी नाहीं है, लोक नानाकूं देखे है, तिस ब्रह्मकूं नाहीं देखै है सो लोककै अविद्या है, इत्यादि, ताकै प्रति उत्तरद्वारा निषेध - करने के इच्छुक आचार्य कहैं हैं -- 1 तोरद्वैतसिद्धिवेद् द्वैतं स्याद्धेतुसाध्ययोः । हेतुना चेद्विना सिद्धिद्वैतं वाङ्मात्रतो न किम् ॥ २६ ॥ अर्थ – हे अद्वैतवादी ! जो तू हेतुतैं अद्वैतकी सिद्धि मानेगा कि " जो सर्व नाना वस्तु दीखै हैं सो प्रतिभास मैं सर्व गर्भित भये, प्रतिभासवाली होनेंतें ” ऐसैं तौ हेतु अर साध्य दोय ठहरै, तत्र द्वैतपणां आया । बहुरि यदि हेतु विना आगममात्रतैं अद्वैतकी सिद्धि मानैं तौ द्वैतता हू वचनमात्रतैं कैसैं न होय । तथा आगम अर अद्वैतब्रह्म ऐसें दोय ठहरे तत्र द्वैतपना क्यों न आवै ॥ २६ ॥ आर्गै अन्य दूषण दिखावै हैं— अद्वैतं न विना द्वैतादहेतुरिव हेतुना । संज्ञिनः प्रतिषेधो न प्रतिषेध्याहते कचित् ॥ २७ ॥ अर्थ- हे अद्वैतवादिन् ! अद्वैत है सो द्वैत विना नाहीं हो सके । अद्वैत शब्द है सो अपना अर्थका प्रतिपक्षी जो परमार्थस्वरूप द्वैत -
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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