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________________ भूमिका । ग्रन्थकर्ताओंका परिचय स्वामी समंतभद्राचार्य. सकलदर्शनपादपपारिजात अनवद्य अनाद्यनिधन इस दिगम्बर जैन संप्रदायमें तीर्थेश भगवान् श्री १००८ महावीरस्वामीजीके मोक्ष गये बाद वीरप्रभुके सर्वहितकर शान्तिप्रद धर्मका प्रचार करने वाले अनेक प्रतिभाशाली महर्षि तथा विद्वान् ऐसे हो गये हैं कि जिनके वाक्य तथा कृत्य कलिकालमें उस तीर्थकताके पूर्ण उद्भवक हैं । क्योंकि उन्होंने भगवानके शीतल सोम सुगन्ध सिद्धान्तका प्रसार उस खूबीके साथ किया है कि जिस तरह मलय चंदन सुगन्धिका दक्षिण वायु करता है उन ऋषियोंमें प्रभुधर्मके यथार्थ प्रवर्तक अनेक ऋषियोंके बाद श्री स्वामी समन्तभद्राचार्यजी एक ऐसे प्रतिभाशाली विद्वान् होगये हैं कि जिनकी कृति तथा अतिशयपांडित्यप्रतिभाप्रभावके गौरवका प्रायः सर्वही प्रतिभाशाली ऋषि तथा विद्वानोंने बहुतही स्तुत्य प्रशंसाके साथ कीर्तन किया है। जैसे कि भट्टा अकलंकदेवजी तथा स्वामी विद्यानंदजीने अपने अष्टशती तथा अष्टसहस्री अंथमें मंगलरूप पद्यों द्वारा स्वामीजीको वर्द्धमान भगवान्के विशेषणमें निवेशित कर भगवान् सदृशही नमस्कार भाव प्रदर्शित किया है। जैसे कि श्रीवर्द्धमानमकलङ्कमनिन्द्यवन्द्यपादारविन्दयुगलं प्रणिपत्य मूनों । भव्यैकलोकनयनं परिपालयन्तम् स्याद्वादवम परिणौमि समन्तभद्रम् ॥ ( अष्टशति) श्रीवर्द्धमानमभिवन्द्यसमन्तमद्रमुद्भूतबोधमहिमानमनिद्यवाचम् । शास्त्रावताररचितस्तुतिगोचराप्तमीमांसितं कृतिरलंक्रियते मयास्य ॥
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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