SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्त-मीमांसा। १५ - अन्यभवकी प्राप्ति सो संसार है सो प्रत्यक्ष है अनुमानका तौ विषय ही नांही तिनकी बाधा कैंसैं आवै । बहुरि तिनका विषय होइ तौ ते साधक ही होय, बाधक न होइ । बहुरि संसारका कारणतत्व भी प्रमाणबाधित नांहीं है जाते कारण विनां कार्य होय नाही। मिथ्यात्वादि संसारके कारण प्रसिद्ध हैं । ऐसैं मोक्ष मोक्षका कारण अर संसार संसारका कारण तत्व प्रमाणकरि बाधे न जाँय तातें भगवान अरहतके वचन युक्तिशास्त्रतें बाधे न जाय । सो ऐसे निर्बाध वचन भगवानकै निर्दोषपणांकू साधै ही है। इहाँ कोई कहै-सर्वज्ञ वीतरागकै इच्छा विना उपदेशरूप वचनकी प्रवृत्ति कैसैं संभवै ? ताकू कहिए है-वचन प्रवृत्तिकू कारण नियमकीर इच्छा ही नही है । विनां इच्छा भी वचन प्रवृत्ति होइ है, जैसैं सूता आदिककै इच्छा विना वचन प्रवृत्ति होइ है तैसैं जानना, यातै सर्वज्ञ वीतराग भगवान् स्तुति करने योग्य है या" हे भगावन् ! ऐसे तुम ही मोक्ष मार्गके प्राप्त करनेवाले हो अन्य कपिल कहिये सांख्यमती आदिक ऐसे नाहीं हैं ॥ ६॥ . सोई दिखाइये हैं त्वन्मतामृतबाह्यानां सर्वथैकान्तवादिनाम् । - आप्ताभिमानदग्धानां स्वेष्टं दृष्टेन बाध्यते ॥७॥ अर्थ-हे भगवन् ! तुम्हारा मत अनेकान्त स्वरूप वस्तु है:। तथा ताका ज्ञान है सो यहु अमृत जो मोक्ष ताका कारण हैं तातें यह मतभी अमृत है, सर्वथा निर्बाध है, तातें भव्यजीवनिके परितोषका उपजावनेवाला है यारौं बाह्य सर्वथा एकान्त है। तिसके अभिप्रायवाले तथा कहनेवाले सांख्य आदि मतके प्ररूपक कपिल आदिक हैं ते आप्तपणांके अभिमान करि दग्ध हैं । जातै ऐसैं मानें हैं जो हम आप्त हैं अर बाधासहित सर्वथा एकान्तके कहनेवाले हैं तातें झूठा
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy