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________________ अनन्तकीर्ति - ग्रन्थमालायाम् प्रमाणवादी कहै - जो सांचा देवनिका आगमआदि विभूतिसहितपणां भगवानकै है ते मायात्रीनिविषै नाहीं तातैं हेतु व्यभिचारी नाहीं, तौ तहां भी ऐसा उत्तर जो सांचे. विभूति भगवानकै प्रत्यक्ष अनुमान तैं सिद्ध भये नाहीं अर आगमतैं सिद्ध किये माने तो आगमाश्रित ही भया तातैं इस हेतुतैं स्तुति करनें योग्य भगवान आप्त सिद्ध होय नाहीं ॥ १ ॥ आगै फेरि मानूं भगवान पूछे है - जो अंतरंग अर बाह्य शरीरादि महोदय हमारे हैं तैसा अन्यकै नाहीं, सांचा है यातैं हम महान स्तुति करनें योग्य हैं तातें तैसैं स्तवन क्यों न किया, ऐसें पूंछें मानूं फेरि आचार्य कहैं हैं— अध्यात्मं बहिरण्येष विग्रहादिमहोदयः । दिव्यः सत्यो दिवौकष्वप्यस्ति रागादिमत्सु सः ॥ २ ॥ अर्थ — अध्यात्म कहिए आत्माश्रित-शरीराश्रित अंतरंग शरीर आदिका महान् उदय मल पशेव रहितपणां आदिक, बहुरि बाह्य देवनिकरि किया गंधोदकवृष्टि आदिक ये सांचे मायावीनिविषै नाहीं पाइये, बहुरि दिव्य है चक्रवर्त्यादिक मनुष्यनिकै ऐसे न पाइये । सो ऐसे हेतु तैं भी भगवान आप्त तुम हमारे स्तुति करनें योग्य नाहीं हो जातैं यहु अंतरंग बहिरंग सांचा महोदय यद्यपि पूरणादिक इन्द्रजालीनिविर्षै न पाइये है तौऊ कषाय रागादिकसहित स्वर्गकं देवतिनिधि पाइये हैं तातैं हेतु व्यभिचारी है । इस हेतुतैं भी भगवान् परमात्मा हैं ऐस नाहीं स्तुतिगोचर कीजिए हैं। इहाँ भी कहै — जो भगवान के घातिकर्मके नाशर्तें जैसा विग्रहादिमहोदय है तैसा रागादिसहित देवनिविषै नांहीं है ? तहाँ भी पूर्वोक्त ही उत्तर—जो भगवानकै घातिकर्म नांशर्तें उपज्या ऐसैं साक्षात् दीखे नाहीं तातैं यह भी स्तवन तथा हेतु
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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