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________________ आप्त-मीमांसा। यह देवागमनामा स्तवन किया, सो याका देवागम ऐसा तो आदि अक्षरके संबंधतें नाम है । अर याका सार्थक नाम आप्तमीमांसा है। मीमांसा परीक्षाकू कहिए हैं । बहुरि इस स्तवनकी अकलंकदेव आचार्यनैं वृत्ति करी ताके श्लोक आठसै हैं, ताकू अष्टशती ऐसा नाम कहिये हैं । बहुरि तिस अष्टशतीका अर्थ लेय श्रीविद्यानन्दिनाम आचार्य. अष्टसहस्रीनामा याकी अलंकाररूप टीका रची है। सो यह प्रकरण न्यायपद्धतिका है । इसका अर्थ व्याकरण न्यायशास्त्रके पढ़ेनिकू भासै है सो ऐसे पढ़नेवाले तथा इनकी गुरु-आम्नायकी विरलता हो गई है ताकरि अर्थके समझनेवाले विरले हैं। मेरे कळू इनका बुद्धि सारू बोध भया तब विचार भया-जो सम्यग्दर्शनका प्रधानकारण आप्त, आगम, पदार्थका जानना है अर आप्तकी परीक्षा इन ग्रंथनिमैं है। सो आप्तका यथार्थ स्वरूप इन ग्रंथनितें प्रकट होय तो बड़ा उपकार होय, अल्पबुद्धि हू आप्तका स्वरूप यथार्थ समझै तौ ताके वचन आगम है, तथा तिस आगममैं पदार्थका स्वरूप वर्णन है ताकू समझैं सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होय ऐसैं विचारि या स्तवनकी देशभाषामय वचनिका संक्षेप अर्थरूप अष्टसहस्री टीकाका आशय लेय कछू लिखू हूं सो भव्यः जीव बांचियो, पढ़ियो, धारियो, यातें आप्तका यथार्थ स्वरूप जानि श्रद्धान दृढ़ कीजियो । अर अर्थमैं कहूं हीनाधिक लिखू तो विशेष बुद्धवान् मूल श्लोक तथा टीका देखि शुद्धकरि बांचियो, मेरी अल्पबुद्धि जानि हास्य मति करियो । सत्पुरुषनिका स्वभाव गुणग्रहण करणेका होय है । सो दोष देखि क्षमा ही करें ऐसैं मेरी परोक्ष प्रार्थना है । इस देवागम स्तोत्रकी पीठका ऐसैं हैं यामैं परिच्छेद दश हैं । तिनमैं आदिका प्रथम परिच्छेदमैं कारिका (श्लोक ) तेईस हैं । तिनमैं आदिमैं देवागम इत्यादि तीन श्लोकमैं
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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