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________________ १०८ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् - दोय पर्याय कूं प्रधान गौण करि प्रवर्ते । द्रव्य अर पर्यायकूं प्रधान गौण कार प्रवर्ते ऐसें तीन । तहां दोय शुद्ध द्रव्यकूं प्रधान गौण कार प्रवर्ते । तथा एक शुद्ध एक अशुद्धि एैसैं दोयद्रव्य कूँ प्रधान गोण कार प्रवर्ते । ऐसे द्रव्य नैगम दोय प्रकार बहुरि पर्य्याय नैगम तीन प्रकार दोय अर्थ पय्यर्या दोय व्यंजन पर्य्याय एक अर्थ पर्याय एक व्यंजन पर्याय इनकूँ प्रधान गौण करि प्रवर्ते तहाँ प्रधान अर्थ पर्याय तीन प्रकार ज्ञानार्थ पर्याय ज्ञेयार्थ पय्र्याय ज्ञानज्ञेयार्थ पर्य्याय ऐसें व्यजंन पर्य्याय नैगम छह प्रकार शब्द व्यंजन पर्य्याय, समभिरूढ व्यंजन पर्य्याय, एवंभूत व्यंजन पर्याय, शब्द सममिरूढ व्यंजन पर्याय, शद्व एवंभूत व्यंजन पर्याय, सममिरूढ एवंभूत व्यंजन पर्याय, ऐसें बहुरि अर्थ व्यंजन पर्य्याय नैगम तीन प्रकार है। ऋजुसूत्रशब्द, ऋजुसूत्रसमभिरूढ, ऋजुसूत्र एवंभूत । ऐसें - बहुरि द्रव्यपर्य्यायनैगम आठ प्रकार है । शुद्धद्रव्यऋजु सूत्रार्थ पर्याय शुद्धद्रव्यशद्व, शुद्धद्रव्यसमभिरूढ, शुद्धद्रव्यएवंभूत । अशुद्धद्रव्यऋजु सूत्र, अशुद्धद्रव्यसमभिरूढ, अशुद्धद्रव्यशब्द, अशुद्धद्रव्य एवं भूत ऐसें बहुरि शब्दनयके काल कारक लिंग संख्या साधन उपग्रहके भेद हैं मुख्य गौण करि प्रवर्त्ते इत्यादि नय, जे ते वचनके भेद हैं ते ते ही नय हैं ॥ तिनके मुख्य गौण करि विधिनिशेधतैं सात सात भंग करि प्रवर्तें हैं । सो एैसें नयनिकी अपेक्षा ले स्याद्वाद प्रवर्त्तं है । सो हेय उपादेय तत्व कूं जनावै है ॥ १०४ ॥ आगैं कहैं हैं । जो ऐसा यह स्याद्वाद है । सो केवल ज्ञानकी ज्यों - सर्व तत्त्व प्रकाशक है । सो ही दिखावैं हैं । स्याद्वादकेवलज्ञाने सर्वतत्वप्रकाशने । भेदः साक्षादसाक्षाच्च, ह्यवस्त्वन्यतमं भवेत् ॥ १०५ ॥
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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