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________________ ___ग्रंथपरिचय । यह आप्तमीमांसा ( देवागम ) नामका ग्रंथ अनुष्टुप श्लोक संख्यामें ११४ प्रमाण मात्र है परंतु आशयमें यह जलाशय ( समुद्र ) की उपमाको लिये हुए है। यद्यपि यह ग्रंथ भगवत् स्तुतिरूप है तथापि भगवत स्वरूपके ज्ञान विशेषमें साक्षात् एक अपूर्वही सिद्ध शक्ती है जिसके द्वारा कि भाग्यशाली पुरुषकी ईश्वरीय ज्ञानविषयक आकांक्षा पूर्णरूपमें पूर्ण हो जाती है। तथा विज्ञान कलामें इससे पूर्णिमाके पूर्णचंद्रकी शक्ति जागृत होती है इस ग्रंथकी वृत्ति, अष्टशती तथा अष्टशहस्त्री टीकाओंको पढ़कर यह सहज रूपसेही समझमें आ जाता है कि यह ग्रंथ स्तुतिरूप होकर भी दर्शन विषयका एक खानि स्वरूप प्रधान अंग है क्योंकि इसमें मताभास निराकरण(ताओं)के साथ असलीयत तत्वकी खूबी उस खूबीके साथ वर्णन की गई है कि जिसकी सादृश्यता शायदही कहीं हो । विषय प्रधानतासे यह ग्रंथ दश परिच्छेदोंमें विभक्त है। जिसका कि परिचय व्यौरेवार विषय सूचीमें है । हमने पाठकोंके सुभीतेके लिये इस ग्रंथमें भूमिकाके साथ श्लोक सूची तथा विषय सूची भी लगा दी है। जो कि उपयोगितामें विशेष अवलंबन है। उपलब्ध ग्रंथोंमें स्वामीजीका यह ग्रंथ कुछ विशेषही महत्व तथा चमत्कृ. 'तिको लिये हुए है इसका मुख्य कारण यह है कि तत्वार्थ सूत्र सरीखे महत्वपूर्ण ग्रंथकी टीका जो गंधहस्त नामकी-४४००० अनुष्टुप श्लोकप्रमाणमें रची गई है वह बहुतही महत्वपूर्ण होगी और उसीका यह मंगलाचरण है। महत्व शाली ग्रंथका मंगलाचरणभी स्वामी सरीखे ग्रंथकर्ताओंद्वारा महत्वमें कुछ विशेषता लिये अवश्य ही होता है। क्योंकि लोकमें भी कहावत है कि क्षीरसमुद्रको अमृतोत्पत्तिरूप सारता चतुर देवों ही द्वारा प्रदर्शित की गई । यद्यपि भाग्यकी खूवीसे ग्रंथराज श्रीगंधहस्तमहाभाष्य इस समय हम लोगोंके देखने में नहीं आताहै तथापि परंपरा श्रुतिसे तथा अनेक अकाट्य प्रमाणोंसे यह सिद्ध है कि स्वामीजीने गंधहस्त महाभाष्यकी रचना की और यह ग्रंथ गंधहस्तमहाभाष्यका मंगलाचरण है इस विषयमें श्री विद्यानंदजी महाराज अपनी अष्टसहस्रीके मंगलाचरणमें इस प्रकार लिखते हैं। शास्त्रावताररचितस्तुतिगोचराप्तमीमांसितं कृतिरलंक्रियते मयास्य ॥
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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