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________________ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम का स्वरूप संख्या विषय जनावनें स्वरूप है तहाँ ऐसा जानना जो तत्व ज्ञान कहनेंतें अज्ञानकै तथा निराकार दर्शनकैं तथा इन्दिय और विषय कै भिडने रूप सन्निकर्षकें तथा इन्द्रियकी प्रवृत्ति मात्र के प्रमाण पणौंका निराकरण भया । यह प्रमिति प्रति करण नाहीं तातै प्रमाण नाहीं । यहाँ कोई पूछे तत्व ज्ञानकुं सर्वथा प्रमाणता कहतें अनेकांतमें विरोध आवै हैं ताकों कहिये यह बुद्धि है सो अनेकान्त स्वरूप है । जिस आकारतें तत्वज्ञानरूप है तिस आकारतें प्रमाण है। अर जिस आकारतें मिथ्याज्ञान स्वरूप है तिस आकरतें अप्रमाण है। ऐसें बुद्धि प्रमाण अप्रमाण स्वरूप होते अनेकान्तमें विरोध नाहीं है । जैसे निर्दोष नैत्रवाला चन्द्रमा सूर्यको उगतै • देखें । तबपृथ्वी सूं लग्या हुवा दीखै सो चन्द्र सूय पणाकी अपेक्षातो यह देखना प्रयाण है बहुरि पृथ्वीसो लगा देखना अप्रमाण है । वहुरि तैसें ही दोष सहित नेत्रवालाकू एक चन्द्रयाका दोय चन्द्रमादीखै सो चन्द्रमा देखनातो प्रमाण है । अर दोय चन्द्रमा देखना अह्यप्रमाण है ऐसे एकही बुद्धिमें अपेक्षा विवक्षातै प्रमाण अप्रमाणपणा संभव है। वहुरि इहाँ कोई पूछे प्रमाण अप्रमाणका नामका नियमका व्यवहार कैसें ठहरै ताकू कहिये बधते घटतेकी अपेक्षा प्रधान गौण कर नामका व्यवहार चलै है । जैसैं किस्तूरी आदिकमें सुगंध बहुत देखि ताकू व्यवहारमें सुगंध द्रव्य कहिये ऐसे गंधकी प्रधानता करि कह्या । यद्यपि वामें स्पर्श आदि भी हैं—तथापि तिनकी गौणता है । ऐसे नामका व्यवहार है। ऐसे तत्वज्ञान प्रमाणका स्वरूप कह्या । बहुरि संख्या प्रत्यक्ष परोक्षके भेद करि दोइ कहीं तहाँ प्रत्यक्षके भेद दोय । तहाँ व्यवहार प्रत्यक्षतो इन्द्रिय बुद्धिइन्द्रिय करि विषयको साक्षात् जानना बहुरि परमार्थ प्रत्यक्ष सकल प्रत्यक्ष तो केवलज्ञान अर विकल प्रत्यक्ष अवधि मनःपर्ययज्ञान ऐसैं
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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