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________________ ९७ आप्त-मीमांसा | अर्थ – स्वाद्वाद न्यायके विद्वेषी हैं तिनकैं दौऊ पक्ष एक स्वरूप होय नाहीं जातैं इनमैं परस्पर विरोध है । बहुरि अवाच्यताका एकान्त पक्ष भी नाहीं वणें जातैं यामें अवाच्य है ऐसा भी कहनां न वर्णै जातैं यह भी पक्ष श्रेष्ठ नाहीं ॥ ९७ ॥ आगे पूछें हैं जो ऐसें हैं तो प्राणीनिकें बंध कौण हेतुतैं होय है । जाकरि इष्ट अनिष्ट कार्य्य प्राणीनिकैं होय है । सो अबुद्धि पूर्वक अपेक्षा होतैं होय हैं ऐसें पूर्व काह्या सो कहनां वर्णै । बहुरि मुनिकै मोक्ष काहैतैं होय है । जा करि पौरुषतैं इष्टकी सिद्धि बुद्धिपूर्वक अपेक्षातैं होय है । ऐसे पूर्वै कह्या सो कहनां वणें । अर नास्तिक मतका परिहार होय । ऐँसे पूछें इस आशंका के निराकरणके इच्छुक आचार्य कहैं हैं । अज्ञानान्मोहतो बंधो, नाज्ञानाद्वीतमोहतः । ज्ञानस्तोकाद्विमोक्षः स्यादमोहान्मोहितोऽन्यथा ॥ ९८ ॥ अर्थ — मोह सहित अज्ञान है तातें बंध है । बहुरि मोह रहित अज्ञान है तातैं बंध नाहीं है । ऐसें कथंचित् अज्ञानतैं बंध है कथंचित नाहीं । ऐसा अनेकान्त सिद्ध होय है । बहुरि स्तोक ज्ञान होय । अर जामें मोह नाहीं होय एैसे तो मोक्ष होय है । बहुरि जो स्तोक ज्ञान मोह सहित है तातैं बंध होय है पैंसे स्तोक ज्ञानमैं अनेकान्त सिद्ध होय है । इहाँ ऐसा जानना जो कर्म्म बंध स्थिति अनुभाग लियें अपने फल देनेंकूं समर्थ होय ऐसा कर्म्म बंध है सो क्रोधादि कषायनितैं मिल्या मिध्यात्व सहित तथा मिथ्यात्व रहित केवल कषाय सहित अज्ञानतात होय है बहुरि जामें क्रोधादि कषाय तथा मिध्यात्व न मिलै ऐसाअज्ञान यथाख्यात चारित्र वाले मुनिनकेँ हैं । तिस स्थिति अनुभाग रूप बंध नाहीं होय है । ऐसैं ही स्तोक १ अष्ट सहत्री में इसप्रकार पाठ है 'अज्ञान्मोहिनो बन्धो न ज्ञानाद् वीतमोहतः । ज्ञानस्तोकाच्च मोक्षः स्यादमोहान्मोहिनोन्यथा, । 1 आ०-७
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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