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________________ इहां लाई काशिका अठहत्तर भई-आगें सातवाँ परिच्छेदका प्रारंभ । दोहा। अंतरंग वहि तत्व दो. अनेकान्त तैं साधि । वरताये तिनकून । मिथ्या पक्ष सुवाधि ॥१॥ अब इहां प्रथम ही अंतरंग अर्थ ही कू एकान्त करि मानें तामैं दूषण दिखावें हैं। अंतरंगार्थतैकांते बुद्धिवाक्यं मृषाखिलं । प्रमाणा भासमेवातस्तत्प्रमाणाहते कथं ॥ ७९ ॥ अर्थ-अंतरंगार्थ कहिये अपने ही संवेदन अनुभव मैं आवै जो ज्ञान ताका एकान्त जो बाह्य पदार्थ नैं मानना, ताकै हो” बुद्धिवाक्य कहिये हेतुबाद का कारण उपाध्याय शिष्य का वाक्य सो सर्व ही मृषा कहिये असत्य झूठा ठहरै । जाते वाक्य है सो वाह्य पदार्थ है सो अंसरंग एकान्त मैं काहे का ठहरै । बहुरि जब बुद्धि वाक्य झूठे ठहरै तब पर कू प्रतीत उपजावनें • प्रमाण वाक्य करना सो भी प्रमाणा भास ही ठहरा बढीर प्रमाणाभास है सो प्रमाण बिना कैसे होई ? नाहीं होय । ___ ऐसैं दूषण आवै । इहां अंतरंगार्थ एकान्त माननेवाला विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध है सो बाह्य पदाथ मानने वालेकू दूषण दे है सो वचति करि दे है । अरि वचनिकू परमार्थ भूत मा. नाही तब झूठे वचन हैं सो प्रमाण भूत नाही प्रमाणाभास हैं । तब दूषण देना सत्यार्थ कैसे होय बहुरि अपना स्वसंवेदनरूप अंतरंग तत्व स्वतै ही सिद्ध न होय है । जातें स्वसंवेदनकू अद्वैतता माने है । तब द्वैत मानै विना साध्य साधनादि भेद नाहीं बणै है भेद मानै तौ अद्वैत एकान्त न ठहरै बहुरि स्वतः सिद्ध ठहरै । तब अन्य बाह्य तत्व मानै है तिनका मानना
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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