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________________ संघके चार मेदोंमेंसे एक भेद है। स्वामीजी उरगपुरके राजाके पुत्र थे और जन्मका खास नाम उनका शान्तिवा था समन्तभद्र शायद इस नामका विशेषणरूपसे नाम हो, अथवा दीक्षाके बादमें समन्तभद्र नाम रखा गया हो। जो कि स्वामीजीके बोध कराने में अभी यही प्रसिद्ध है। ग्रंथलेखन शैली __ आत्ममीमांसा तथा रत्नकण्रडश्रावकाचारके देखनेसे मालूम पड़ता है कि आपकी ग्रंथलेखन शैली समुद्रको घमें भरनेकी कहावतको वास्तविक चरितार्थ करती है । उसी शैलीपर बृहत्स्वयंभूस्तोत्र, चतुर्विशतिस्तव, युक्त्यानुशासन आदि ग्रंथ भी हैं। विषय पांडित्य दर्शन, सिद्धान्त, साहित्य, व्याकरण, आदि सभी विषयमें आपका अपूर्व 'पांडित्य था क्योंकि दर्शन विषयके पांडित्यमें आपका आप्तमीमांसा ग्रंथ प्रसिद्ध ही हैं। सिद्धान्तमें जय धवला, तथा साहित्यमें चतुर्विंशतिस्तव है इस ग्रंथमें एकाक्षरी यक्षरी चित्रबन्धता आदि साहित्य कला द्वारा साहित्य विषयके पांडि. त्यकी हद्दरूप अद्भुत तथा अनोखी छटाको प्रदर्शित किया है । तथा व्याकरणमें भी समन्तभद्र नामका आपका किया हुआ व्याकरण है। जिसका कि उल्लेख पूज्यपाद स्वामीजीने प्रमाणभूततासे किया है। संक्षेपमें हमें यही कहना है कि आपकी सर्व विषयहीमें अप्रतिहत शक्ति थी क्योंकि इनके ये सर्व मंथ देखनेसे यह बात सहजही से समझमें आजाती है। तथा इस विषयमें विशेषतासे उसी समय पता लगेगा जब कि आपका ग्रंथराज गंधहस्त महाभाष्य जब कभी कहीं मिले । __ आपमैं भगवत विषयक स्तुति परायणता तथा शासनत्व है वह यद्यपि युक्तिमार्गकी प्रधानतासे है तथापि उसमें सर्वज्ञ मार्गका पूर्ण अनुगामीपन है। शास्त्रकारोंने जो परीक्षा प्रधानताका वर्णन किया है वह भक्ति प्रधानताके साथ शक्तिकी पूर्णतामें ही कीया है । जिस जगह यह कारण सामीग्री सागोपाङ्ग है उस जगह स्वामी समन्तभद्रके समान स्तुतिके साथ स्वपरहितपना है। अन्यथामें सिर्फ आकाशके फूलों की कल्पना है। १ उरगपुरसे शायद नागपुर लिया गया हो ।
SR No.022429
Book TitleAapt Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages144
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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