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___एक अनेक स्वा०
(७७) - अब एक और अनेक स्वभाव कहते हैं. अस्तित्व, प्रमेयत्व
और अगुरुलघुत्वादि समस्त स्वभाव तथा गुणविभागादि सव पयायों का आधारभूत क्षेत्र प्रदेश है (प्रदेश उस अविभाग को कहते है जो द्रव्यसे पृथक् न हो) वह स्वक्षेत्र भेदरूप से भिन्न २ हैं. परन्तु एक पिंडीभूत रहते हैं. उन प्रदेशों में क्षेत्रान्तर कभी नहीं होता जो अनन्त स्वभावी, अनन्तपर्यायी असंख्यात प्रदेशरूप है. उनका प्रमाण नहीं पलटता इस तरह द्रव्य में समुदायि पिंडपना रहता है उसको एक स्वभाव कहते हैं. जैसे-पंचास्तिकाय में (१) धर्मास्तिकाय (२) अधर्मास्तिकाय (३) आकाशास्तिकाय ये तीन द्रव्य एकेक हैं जीवद्रय अनन्त है और पुद्गगल परमाणु इससे भी अनन्त हैं. एक जीव नये २ अनेक रूप धारण करता है परन्तु जीवत्वपने में अन्तर नहीं है. यह द्रव्य का एक स्वभाव कहा।
क्षेत्र से असंख्यात प्रदेश, कालसे उत्पाद व्यय और भाव से गुणके अविभाग पर्याय. वे स्वकार्य भिन्न परिणामी है. अर्थात् उन सवका प्रवाह भिन्न २ है और कार्यपना सव का भिन्न है इस लिये पर्याय भेदसे विवक्षा करने पर द्रव्य अनेक स्वभावी हैं. वस्तु में एकपने का अभाव मानने से सामान्यपना नहीं रहता तथा गुण, पर्याय का आधार कौन ? और आधार बिना गुण, पर्याय जो आधेय है वह किस में रहे ? इस लिये द्रव्य में एकपना मानना चाहिये. अब जो अनेकपना नहीं मानते हैं तो द्रव्य विशेष स्वभावसे रहित हो जायगा और विशेष स्वभाव से रहित होने पर गुणकी अनेकता का द्रव्य में अभाव होगा और