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नयचक्रसार हि० अ० कहते हैं और उस ज्ञानको प्रकाशित करनेवाला वाक्य ' प्रमाणवाक्य' कहलाता है । बस्तुके अमुक अंशके ज्ञानको 'नय' कहते हैं और उस अमुक अंशके ज्ञानको प्रकाशित करनेवाला वाक्य 'नयवाक्य' कहलाता है । इन प्रमाणवाक्यों और नयवाक्योंको सात विभागोंमें बांटनेहीका नाम ' सप्तभंगी' है*
...* यह विषय अत्यंत गहन है; विस्तृत है । 'सप्तभंगीतरंगीणी' नामा जैन तर्कग्रंथमें इस विषयका प्रतिपादन किया गया है । सम्मतिप्रकरण' आदि जैन न्यायशास्त्रोमें इस विषयका बहुत गंभीरतासे विचार किया गया हैं।
.. ले.' ( अनुवादक)