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सप्तभंगी सकलादेशः मूर्तीत्व, अचेतनत्वादि पर्यायों की नास्ति है. इस लिये जीव भी परपर्याय से नास्ति है. क्यों कि परपर्यायकी नास्तिता परिणमन द्रव्य में है. यह स्यात् नास्ति नामक दूसरा भंग कहा,
तथा सर्वोघटः स्वपरोभयपर्यायैः सद्भावासद्भावाभ्यां सत्वासत्वाभ्यामर्पितो युगपद्वक्तमिष्टोऽवक्तव्यो भवति स्वपरपर्यायसत्वासत्वाभ्यां एकैकेनाप्यसांकेतिकेन शब्देन सर्वस्यापि तस्य वक्तुमशक्यत्वादिति, एवं जीवस्यापि सत्वासत्वाभ्यांमेकसमयेन वक्तुपशक्यत्वात् स्यादवक्तव्यो जीवः इति तृतीयो भङ्गः । एते त्रयः शकलादेशाः सकलं जीवा
दिकं वस्तुग्रहणपरत्वात् । ___ अर्थ--घटादि सब वस्तु की सद्भाव रुप स्वपर्याय से अ. स्तिता है और परपर्याय से नास्तिता है. अतः स्वपर्याय की अस्तिता
और परपर्याय की नास्तिता ये दोनो धर्म समकालिक है परन्तु एक समय में कहे नहीं जाते. क्योंकि इन दोनों धर्मों के उच्चारार्थ कोइ एसा सांकेतिक शब्द नहीं कि जो एक समय में कहने के लिये समर्थ हो. इस लिये वस्तु स्वभाव के दोनों धर्मों का ज्ञान कराने के लिये स्यात् प्रवक्तव्य ऐसा वचन कहा. किसी को ऐसा बोध न होजाय की वचन से सर्वथा अगोचर है. इस दोष को निवारण करने के लिये स्यात् शब्द का प्रयोग किया. इति स्यात् अवक्तव्य घटः इसी तरह जीवका भी अस्ति नास्ति धर्म है वह एक समय नहीं कहा जाता इस लिये स्यात् प्रवक्तव्य जीवः ये