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________________ परिणामकासमा जोय गुण अस्तस्वभाव लक्षण. (२९) बोधत्व, वेत्तापन, परिच्छेदकत्त्व, विवेचकत्व इत्यादि स्वभाव अस्तिरूप है इसवास्ते इसको अस्ति स्वभाव कहते है. सर्व द्रव्य स्वधर्म, चतुष्टयेन अस्तिस्वभावमय है. स्वधर्मको छोडकर अन्य धर्म में परिणमन नहीं होता. यह अस्ति स्वभाव सब द्रव्यों में अपने २ गुण पर्यायका समझना. वह सद्रूपताकी परिणति सबद्रव्यों में स्वधर्मसे ही परिणमती है जैसे- जीव है वह अजीव रुपसे, एक जीव है वह दूसरे जीव रूपसे और एक गुण है वह अन्य गुणरुपसे परिणत नहीं होता तथा ज्ञानगुणमें दर्शनादि गुणकी नास्तिता है और ज्ञानगुणकी अस्तिता है. तथा एकगुणके पर्याय अनन्त हैं. वे सब पर्याय धर्मत्व रुपसे सरीखे हैं. परन्तु एक पर्यायका धर्म दूसरे पर्याय में नहीं हैं और दूसरे पर्यायका धर्म पहिले पर्याय में नहीं है. सब अपने २ धर्म में अस्ति हैं. इस तरह अस्तिनास्तिका ज्ञान सब जगह कर लेना. इत्यस्तिस्वभावः . . ___ अन्यजातीयद्रव्यादिनां स्वीयद्रव्यादिचतुष्टयतया व्यवस्थितानां विवक्षिते परद्रव्यादिके सर्वदैवा भावाविच्छिनानां अन्यधर्माणां व्यावृत्तिरूपो भावः नास्तिस्वभाव: यथा जीवे स्वीयाः ज्ञानदर्श नादयो भावाः अस्तित्वे, परद्रव्ये स्थिताः अचेतनादयो भावानास्तित्वे साच नास्तिता द्रव्ये अस्तित्वेन वर्तते, घटे घट धर्माणां अस्तित्वं पटादि सर्वपर द्रव्य वृत्ति धर्माणां नास्ति त्वं एवं सर्वत्रज्ञेयम् । अर्थ--विजातीय जो द्रव्यगुण पर्याय हैं. वे स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र स्वकाल, स्वभाव चारों अपने द्रव्यगुणपर्यायमें अवस्थित है.
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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