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नयचक्रसार हि० अ० (रूपायाः) । शक्तेराधारत्वं द्रव्यत्वं (४) स्वपर व्यवसायिशानं प्रमाणं, प्रमीयते अनेनेति प्रमाणं तेन प्रमाणेन प्रमातुं योग्यं प्रमेयं ज्ञानेन ज्ञायते तययोग्यंतात्वं प्रमेयत्वं (५) उत्पाद व्ययध्रुवयुक्तं सत्त्वं (६) षड्गुण हानि वृद्धि खभावा अगुरूलघुपर्यायास्तदाधारत्वं अगुरुलघुलं एतेषट्स्वभावाः सर्वे द्रव्येषु परिणमंति तेन सामान्य स्वभावाः
अर्थः-उस सामान्य स्वभाव के मुख्य छे भेद हैं. और वे ये हैं. (१) अस्तित्व ( २ ) वस्तुत्व ( ३ ) द्रव्यत्व ( ४ ) प्रमेयत्व (५) सत्त्व (६) अगुरुलघुत्व. तत्र (१) नित्यत्वादि उत्तर सामान्य स्वभावों के, परिणामिकत्वादि विशेष स्वभावोंके आधारभूत धर्मको अस्तिस्वभाव कहते हैं. (२) गुणपर्याय के आधारभूत पदार्थको वस्तुस्वभाव कहते है. ( ३ ) अर्थक्रियाके
आधार को द्रव्यत्व स्वभाव कहते हैं. अथवा-उत्पाद, व्यय में उत्पाद पर्यायों का प्रसव-आविर्भाव लक्षण जो शक्ति तथा व्ययीभूत पर्यायोंकी तिरोभाव-अभावरूप शक्ति उसके आधारको द्रव्यत्व स्वभाव कहते हैं. ( ४ ) स्वपर ग्राहक ज्ञानवही प्रमाण है, जिससे प्रमाणित किया जाय वही प्रमाण शब्दका वाच्य हैं ज्ञानसे अवबोध करनेवाली शक्ति को प्रमेयत्व स्वभाव कहते हैं ( ५ ) उत्पादव्यय ध्रुवयुक्त हो उसको सत्त्व कहते हैं ( ६ ) षड्गुण हानि वृद्धिरुप अगुरूलघु पर्याय है उसके आधारत्व को अगुरूलघु स्वभाव कहते हैं. ये छे स्वभाव सब द्रव्यों में परिणत होते हैं. इसवास्ते सामान्य स्वभाव है.