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कालव्य का लक्षण.
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प्रदेशी है. (५) पुद्गल परमाणुरूप है वे परमाणु अनन्ते हैं इस बारते पुद्गल द्रव्य अनन्त हैं. प्रदेशके संबंध बिना परमाणु द्रव्यको अस्तिकाय क्यों कहा ? उत्तर-परमाणु तो एक प्रदेशी है. परन्तु अनन्त परमाणुवों से मिलनेकी सत्तायुक्त योग्यताके कारण पुद्गल द्रव्यको अस्तिकाय कहा है. और काल द्रव्यको केवल उपचार स भिन्न द्रव्य कहा है। व्यवहारनयकी अपेक्षासे सूर्यकी गति परिज्ञान जो समय आवलिकादि का मान है उसका व्यवहार मनुष्य क्षेत्र में है. और मनुष्यक्षेत्रसे बाहिर जो जीव हैं. उनके आयुष्य का मान सर्वज्ञोंने इसी मनुष्य क्षेत्रके परिमाणसे कहा है. इसलिये काल पिंडरुपसे भिन्न द्रव्य सिद्ध नहीं होता. किन्तु उपचार से ही सिद्ध है. जो प्रत्येक द्रव्यमें अनेक पर्याय है उसमें किसी मी पर्यायको द्रव्यरूप नहीं कहा. तो एक वर्तना पर्यायमें द्रव्यारोप किस वास्ते किया ? उत्तर-वर्तना परिणति सब पर्यायको सहकारी है. और सब द्रव्यकों सहकारी है इसलिये यह मुख्यपाय है. वास्ते इस वर्तना पर्यायमें द्रव्यारोप किया है. और अनादि कालसे इसी तरह की व्याख्या है.
एते पंचास्तिकायाः सामान्य विशेष धर्ममया एव तत्र सामान्यतः स्वभाव लक्षणं द्रव्यव्याप्यगुणपर्याय व्यापक त्वेन परिणामिक लक्षणं स्वभावः, तत्र एकं नित्यं निरवयवं प्रक्रियं सर्वगतं च, सामान्यं । नित्यानित्य निरवयव सारयवः, सक्रियताहेतुः देश गतः सर्वगतं च विशेष पदार्थगुण, प्रवृत्तिकारणं विशेषः । न सामान्यं विशेष रहितं नविशेष: सामान्य रहितः ॥