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अन्य दर्शनियों कि मान्यता.
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बैशेषिक ( १ ) द्रव्य ( २ ) गुण ( ३ ) कर्म ( ४ ) सामान्य ( ५ ) विशेष ( ६ ) समवाय ( ७ ) अभाव यह सात पदार्थ कहते है. परन्तु उसमे जो गुण पदार्थ कहा है वह तो द्रव्य में ही है उसको भिन्न पदार्थ कहना अनुचित है. कर्म द्रव्य का कार्य है. और सामान्य तथा विशेष यह दोनो परिणमन स्वभाव है. समवाय तो कारणता रुप द्रव्य का परिवर्तन है और अभाव असत्य को कहते हैं । असत्य को पदार्थ कहना अघटित है और वे नो पदार्थ भी कहते है. (१) पृथ्वी ( २ ) अप ( ३ ) तेज ( ४ ) वायु ( ५ ) आकाश ( ६ ) काल ( ७ ) दिक ( ८ ) आत्मा ( C ) मन | उत्तर - पृथ्वी, अप, वायु, तेज ये आत्मा है, परन्तु कर्म योग शरीर भेद से ये भिन्न है. दिशा आकाश से भिन्न नहीं है और मन आत्मा के संसारीपने उपयोग प्रवर्तन द्वारा होता है. इस लिये भिन्न द्रव्य कहना मिथ्या है.
वैदान्तिक, सांख्य एक आत्मा अद्वैतयाने - एक ही पदार्थ मानते है. उनकी भी यह भूल है. क्यों कि जो शरीर है वह रुपी है और पुद्गल द्रव्य का स्कंध है. इस लिये एक पदार्थ कैसे सिद्ध हो सक्ता है. आत्मा और शरीर का आधार आकाश है और वह प्रत्यक्ष सिद्ध है. इस लिये मानना ही पडेगा वास्ते अद्वैतपना भी निषेध हुवा.
बौद्धर्शन समय २ नवानवा (१) आकाश ( २ ) काल (३) जीव (४) पुद्गल ये चार पदार्थ मानते है. उनसे पूछा