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________________ निक्षेप. (१४३) पाठक ज्ञान धर्मगुणी । पाठक श्री दीपचन्द्र ।। तान सीस देवचन्द्रकृत । भणता परमानंद ॥२०॥ ॥ अनुवादकीय ग्रन्थ समाप्ति सवैया इकतीसा ॥ मे-ध ज्युं वर्षत ध्वनि, धारा अनुपम पुनि । घ-न ज्यू गर्जत घोर, हृदै हुलसायो है । रा-ग द्वेष लेस नाही, मोह को प्रवेश नाहीं । ज-गत उद्धार सार, यही मन भायो है ।। मु-नि वीच इन्द चन्द, सोहत पानंद कंद । नौ-पांच को निकन्दात्म, भाव प्रगटायो है ॥ त-रन तारन धीर, वीर को नमन करी । गुरु के चरण रज, सीस पै चढायो है ॥१॥ ताहि के प्रसाद नय-चक्र अनुवाद कीनो। देवचन्द्र सूरि कृत, बालबोध भायो है। तत्त्वबोध हेतु मुनि, सेतु सुन्दरज्ञान पायो । फळवृद्धि काज मेघ हिय हुलसायो है ।
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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