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________________ नयस्वरूप. और सुख लक्षण धर्म की प्रधानता विशेषण रूप से है यह विशेष विशेषण भाव से धर्मधर्मी को अवलंबन कर के नेगम नय का तीसरा भेद कहा. धर्मधर्मी दोनों को पालम्बन, ग्रहण करने से सम्पूर्ण वस्तु ग्रहण होती है और तभी वह ज्ञान प्रमाण हो सका है. अर्थात् द्रव्य, पर्याय दोनों का अनुभव करता हुवा जो ज्ञान है वह प्रमाण होता है यहां दोनों पक्ष के विषय एक की गौनता और दुसरे की मुख्यता का ज्ञान होता है इसलिये उसको नय कहते है.। तथा सूक्ष्मनिगोद के जीव समान सत्तावान है और अयोगी केबली को संसारी कहना यह अंश नैगम नय है.।। नैगमाभास--वस्तु में अनेक धर्म है. उस को एकान्तपने माने परन्तु एक दूसरे को सापेक्ष न माने अर्थात् एक धर्म को माने और दूसरे को न माने उसको नेगमाभास कहते हैं. यह दुर्नय है. क्यों कि अन्य नय की गवेषणा नहीं करता. बैसेमात्मा में सत्त्व, चेतन्यत्व दोनों भिन्न भिन्न है जिस में एक मान्य और दूसरा अमान्य करे उसको नैगमाभास कहते हैं. यह नैगमनय का स्वरूप कहा. यथाऽऽत्मनि सत्त्व चैतन्ये परस्परं भिन्ने सामान्यमात्रयाही सत्तापरामर्शरूपसङ्ग्रहः स परापरभेदात् द्विविधः तत्र शुद्धद्रव्य सन् मात्रयाहकः परसंग्रहः चेतनालक्षणो जीवः इत्यपरसङ्घाइ सत्ताद्वैतं स्वीकुर्वाणः सकलविशेषान् निराचरणः सत्यहा भासः सङ्ग्राहस्यैकत्वेन ' एमेाया" इत्यभिज्ञानात् सचदेव
SR No.022425
Book TitleNaychakra Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMeghraj Munot
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1930
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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