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निक्षेप. कनाम । स्थापना निक्षेप के दो भेद (१) सहज स्थापना जो वस्तु की अवगाहना रूप ( २ ) आरोपस्थापना जो आरोपकर के स्थापन की जाय अर्थात् कृत्रिम । द्रव्यनिक्षेप के दो भेद (१)
आगमसे द्रव्यनिक्षेप जो जीव स्वरूप के विना जाने तपसंयमादि क्रिया करनी या लाज मर्यादा के वास्ते सूत्र सिद्धान्त पढ़ना (२) नोआगम द्रव्यनिक्षेप वस्तु गुण सहित है परन्तु वर्तमान में गुणरूप नहीं है जिसके तीन भेद (१) ज्ञशरीर-मरे हुवे पुरुषका शरीर जैसे—रूषभदेव स्वामी के शरीर की भक्ती जंबूद्वीपपन्नती में लिखी है. (२) भव्य शरीर-वर्तमान में तो गुण नहीं है परन्तु गुणमय होगा जैसे-एवन्नामुनि (३) तद्व्यतिरिक्त-जो गुण सहित विद्यमान है परन्तु वर्तमान में उपयोग सहित नहीं वर्तता । भाव निक्षेप के दो भेद (१) आगमसे भाव निक्षेप जो आगमसे अर्थ को जाननेवाला और उपयोग सहित वर्तता हैं (२) नोआगमसे भावनिक्षेप जिस प्रकारसे ज्ञेय वर्तता है वही रूप है। -- इन चार निक्षेपों में प्रथम के तीन निक्षेप कारणरूप है और चौथा भाव निक्षेप कार्यरूप है. भाव निक्षेपको उत्पन्न करने के लिये पहिले के तीन निक्षेप सप्रमाण है अन्यथा अप्रमाण है. पहिले के तीन निक्षेप द्रव्यनय है और भावनिक्षेप भावनय है भावनिक्षेप को नहीं उत्पन्न करनेवाली केवल द्रव्य प्रवृत्ति निष्फल है श्री आचाराङ्ग सूत्र की टीकाके लोकविजय अध्ययन में कहा है. " फलमेव गुणः फलगुणः फलं च क्रिया भवति तस्याश्च क्रियायाः