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निक्षेप स्वरूप. नहीं है क्यों कि ठाणांगसूत्र की टीका में श्रुतज्ञान के अधिकार का सात अंग कहा है [१] सूत्र [२] नियुक्ति [३] भाष्य [४] चूर्णि जो सूत्रादि सब का अर्थ प्रकाश करे [५] टीका-निरन्तर व्याख्या, ये पांच अंग ग्रन्थरूप है; [६] परंपरारूप अंग [७] अनुभवरूप अंग इन सातों का विनय सहित पठनपाठन करने से सच्चे अर्थ की प्राप्ति होती है; और आत्मा का निरमल गुण प्रगट होता है श्रीभगवती सूत्र में कहा है:-" सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ नियुत्तिमिसिनो भणीओ तइयो अनिर विसेसो एस विहि होइ अणुोगो" ये पांच पर्याय सब द्रव्यो में होते हैं।
[६] विभाव पर्याय-यह जीव और पुद्गल में हैं; जीव में नरनारकादिरूप विभाव पर्याय है और पुद्गल में द्वेणुकादि यावत् अनन्ताणुकस्कंध तथा अनन्त गुणपर्यन्त स्कंधरूप विभाव पर्याय है।
___॥ निक्षेप स्वरूप ॥ मेर्वाद्यनादिनित्यपर्यायां: चरमशरीरत्रिभागन्यूनावगाहनादयः सादिनित्यपर्यायाः सादिसान्तपर्यायाः भवशरीराध्यवसायादयः अनादिसान्तपर्यायाः भव्यत्वादयः तथा च निक्षेपाः सहजरूपा वस्तुनः पर्यायाः एवं चत्वारो वत्थुपज्झाया इति भाष्य वचनात् नामयुक्तेमति वस्तुनि निक्षेपचतुष्टयं युक्तम् उक्तं चानुयोगद्वारे जत्थ य ज जाणिज्झा, निक्खेवं निरिखवे निखसेस, जत्थ य नो जाणिज्झा, च उकं निरिकवे तत्थ, तत्र नामनिक्षेपः स्थापनानिक्षेपः द्रव्य