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________________ प्रधान सम्पादकीय सोमदेव कृत 'यशस्तिलक चम्पू' का जैन-साहित्य में ही नहीं, किन्तु भारतीय वाङ्मय में एक विशिष्ट स्थान है। डॉ. कीथ के मतानुसार, सोमदेव 'निश्चित ही सुरुचि और बड़ी सूझबूझ के कवि हैं।' (हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर, पृष्ठ 335) तथा डॉ. हान्दिकी का कथन है कि "गद्य-कथा-विषयक अपने विशेष लक्षणों के अतिरिक्त 'यशस्तिलक' में ऐसी विधाएँ हैं जिनके कारण उसका सम्बन्ध संस्कृत साहित्य की नाना शाखाओं से स्थापित होता है। यह केवल गद्य-पद्यात्मक जैन कथा मात्र नहीं है, किन्तु यह जैन व अजैन धार्मिक और दार्शनिक सिद्धान्तों का पांडित्यपूर्ण संग्रह है, राजनीति की एक संहिता है, काव्यगुणों, प्राचीन आख्यानों, अवतरणों और उल्लेखों तथा बहुसंख्यक दुर्लभ शब्दप्रयोगों का विशाल भंडार है। सोमदेव की 'यशस्तिलक' एक उच्च कोटि की विद्वत्तापूर्ण कृति है जो साहित्यिक प्रतिभा और काव्यात्मक भावना के आलोक से सजीव हो उठी है।" (यशस्तिलक ऐंड इंडियन कल्चर, पृष्ठ 53)। ____ इतने गुणों का एक साथ समावेश करने के लिए महाकवि ने न गद्य और न पद्य मात्र को अपना माध्यम बनाना पर्याप्त समझा। रुचि और अवसर के अनुसार उन्होंने इन दोनों प्रकार की रचनाओं का प्रायः समान मात्रा में उपयोग किया है। उनका गद्य सुबन्धु और बाण की रचनाओं का स्मरण दिलाता है; और पद्य कालिदास, माघ और श्रीहर्ष का। इस रचना-शैली को साहित्यकारों ने 'चम्पू' की संज्ञा दी है-'गद्य-पद्यमयी काचित् चम्पूरित्यभिधीयते' (दंडि-काव्यादर्श)। तथापि विद्वान् अभी तक खोज नहीं लगा पाये कि चम्पू शब्द की ठीक-ठीक व्युत्पत्ति क्या है। यों तो गद्य के साथ यत्र-तत्र कुछ पद्यों का प्रयोग ब्राह्मणों में, बौद्ध पालि व संस्कृत रचनाओं में तथा हितोपदेश, पंचतंत्रादि कथाओं में बहुत प्राचीन काल से पाया जाता है; तथापि जहाँ तक हमारी वर्तमान जानकारी है, इस काव्य-शैली का आविर्भाव दशमी शती से पूर्व नहीं पाया जाता। सोमदेव अपनी कृति के पूर्ण होने का काल सिद्धार्थ संवत्सर 881 (सन् 959) स्पष्टता से निर्दिष्ट किया है। इससे पूर्व यदि कोई चम्पू-काव्य रचा गया हो तो वह केवल त्रिविक्रम भट्ट कृत 'नलचम्पू' ही हो सकता है। इस चम्पू में उसके रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं है, तथापि विद्वानों का अभिमत है कि वे वही त्रिविक्रम हैं जिन्होंने सन् 915 ई. में राष्ट्रकूटनरेश इन्द्र तृतीय के नवसारी से प्राप्त लेख की रचना की थी। आठ 'आश्वासों' में पूरा हुआ सम्पूर्ण 'यशस्तिलक' अभी तक केवल एक बार निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से सन् 1903 में श्रुतसागरी टीका सहित प्रकाशित हुआ था। प्रथम प्रधान सम्पादकीय :: 5
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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