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________________ प्रस्तावना सोमदेवने उपासकाध्ययनके अन्तिम आश्वासमें शैव और तान्त्रिक मतोंके कुछ मूलभूत विचारोंका खण्डन किया है। वे हैं-ज्योति', बिन्दु, कला, नाद, कुण्डली और निर्बीजीकरण । 'ज्योति' शिवके गूढ़ नामोंमें से है। संस्कृतमें 'ज्योति' शब्द नपुंसक लिंग है। एक ही शिव तत्त्वको भी पुल्लिग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग शब्दोंके द्वारा कहा जाता है। यद्यपि शिवतत्त्व लिंगरहित है तथापि उसका कथन लिंगभेदसे किया जाता है। प्रणव अथवा 'ओं' को भी, जो शिवका वाचक है, ज्योति शब्दसे कहा जाता है। ___ कला शव सिद्धान्तोंके छत्तोस मख्य सिद्धान्तोंमें-से है। यह मनुष्यकी कतत्व शक्तिको प्रकट करती है इसलिए इसे कला कहते हैं दूसरे शब्दोंमें पशु अर्थात् पाशबद प्राणीमें जो मर्यादित कर्तृत्व शक्ति है उसका मूल कारण कला है। नाद और बिन्दु ये दो धारणाएं हैं। इनका सदा एक साथ निर्देश किया जाता है । शिवपुराणमें लिखा है कि सृष्टिके आरम्भमें शिवकी इच्छासे शक्ति प्रकट होती है। और जब वह शक्ति शिवको उत्पादक शक्तिके द्वारा उत्तेजित की जाती है तो नाद उत्पन्न होता है, उससे बिन्दु होता है, बिन्दुसे सदाशिव, सदाशिवसे महेश्वर और महेश्वरसे विद्या उत्पन्न होती हैं। शिव, शक्ति, सदाशिव, ईश्वर और महेश्वर ये पांच शुद्ध तत्त्व है। इन्हींमें नाद और बिन्दु भी गभित हैं। कुण्डलिनी संचित शक्ति है जो प्रत्येक व्यक्तिमें स्वाभाविक रूपसे पायी जाती है, प्राथमिक अस्पष्ट ध्वनिसे लेकर साहित्यिक वाणी तक सब ध्वनियां उसीसे उत्पन्न होती हैं । ___ कुण्डलिनीके स्थानको मूलाधार कहते हैं । यह सुषुम्ना नाड़ोसे आवेष्टित है। कुण्डलिनीको कल्पना कुण्डलीभूत सर्पको तरह की जाती है, किन्तु राघवभट्टने शारदातिलक ( १-५१ ) को टीकामें लिखा है कि मूलाधारमें कुण्डलीभूत सर्पकी तरह एक नाड़ी है और यह नाड़ी वायुके द्वारा प्रेरित होकर शरीरके सब भागोंमें भ्रमण करती है। वायुके द्वारा कुण्डलिनीके इस संचारको गुणन कहते हैं । 'कुण्डली वायुसंचरः' वाक्यका यही अभिप्राय है। निर्बीजीकरण एक यौगिक प्रक्रिया है और उसका उद्देश्य है शरीरपर पूर्णाधिकार करना। सोमदेवने इन सबको व्यर्थ बतलाया है। कुलाचार्य और त्रिकमत सोमदेवने लिखा है कि कुलाचार्यके मतानुसार समस्त पेय अपेय और भक्ष्य अभक्ष्य वगैरहका निःशंक चित्तसे सेवन करनेसे मुक्ति मिलती है । सोमदेवसे दो शताब्दी पश्चात् यशःपाल नामके जैन ग्रन्थकारने 'मोहराज पराजय' नामका नाटक रचा था। उन्होंने भी कोलों अथवा कुलाचार्योका यही मत दिया है। इस नाटकमें कोल कहता है कि "प्रतिदिन मांस खाना चाहिए और दिल खोलकर मध पीना चाहिए । मनकी गति अनिवार्य है। यह धर्म मैंने कहा है।" कर्पूरमंजरी नाटिकामें भी भैरवानन्दने कोलधर्मका यही स्वरूप बतलाया है १. "ज्योतिबिन्दुः कला नादः कुण्डली वायुसंचरः ।" २. "एकमेव शिवतत्त्वं पुंल्लिा-बीलिङ्ग-नपुंसकलिङ्गशब्दैऱ्यावहियते । तदुक्तं वृंहण्याम्____शिवो देवः शिवा देवी शिवं ज्योतिरिति विधा। भलिगमपि यत्तत्वं लिंगभेदेन कथ्यते।" -तत्वप्रकाश टीका ३-३ । ३. "म्यञ्जयति कर्तृशक्तिं कलेति तेनेह कथिता सा।"-तत्त्वप्रकाश ३.६।। ४. “सर्वेषु पेयापेयभक्ष्यामक्ष्यादिषु निःशकचित्तात्तात् इति कुलाचार्यकाः।"-सो० उपा०, पृ० २। ५. "खजह मंसं अणदिणु पिजा मजं च मुक संकप्पं । अणिवारिय मणपसरो एसो धम्मो मए दिट्ठो॥"५-२२। ६. "रण्णा चण्डा दिक्खिदा धम्मदारा मज्जं मंसं पिजए खजए वा। मिक्खा भोजं चम्मखंड व सेजा कोलो धम्मो कस्स णो मादि रम्मो ॥"-कीर० पृ. २६ ।
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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