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________________ १८ उपासकाध्ययन "चिरकाल से शास्त्ररूपी समुद्रके तलमें डूबे हुए शब्दरूपी रत्नोंका उद्धार करके सोमदेव पण्डितने जी रत्नभूषण तैयार किया है, अब सरस्वती उस अमूल्य आभूषणको धारण करे ।" सचमुच में यशस्तिलक ऐसा ही रत्नभूषण है और समस्त संस्कृत साहित्यको सामने रखकर ही उसका वास्तविक मूल्य आंका जा सकता है । यशस्तिलककी प्रशंसा में स्वयं ग्रन्थकारने यत्र तत्र जो सुन्दर पद्य कहे हैं वे केवल गर्योक्ति नहीं है' । 'असहायमनादर्श रत्नं रत्नाकरादिव । मतः काव्यमिदं जातं सतां हृदयमण्डनम् ॥ १४ ॥ आश्वास १ । कर्णाञ्जलिपुटैः पातुं चेतः सूक्तामृते यदि । श्रूयतां सोमदेवस्य नव्याः काव्योक्तियुक्तयः ॥ २४६ ॥ आश्वास २ । लोकवित्त्वे कविस्वे वा यदि चातुर्यचञ्चवः । सोमदेवकवेः सूकिं समभ्यस्यन्तु साधवः ॥ ५१३ ॥ आश्वास ३ । मया वागर्थसंभारे भुक्ते सारस्वते रसे । कवयोऽन्ये भविष्यन्ति नूनमुच्छिष्टभोजनाः ॥ आश्वास ४ ।” यशस्तिलक और नीतिवाक्यामृतके अनुशीलनसे पता चलता है कि सोमदेव सूरिका अध्ययन बहुत हो विस्तृत और गम्भीर था । उनके समयमें जितना जैन और जैनेतर साहित्य उपलब्ध था, उस सबसे उनका परिचय था । यशस्तिलकके चतुर्थ 'आश्वास में उन्होंने उर्व, भारवि, भवभूति, भर्तृहरि, भर्तृमेष्ठ, कण्ठ, गुणाढ्य, व्यास, भास, वोस, कालिदास, बाण, मयूर, नारायण, कुमार, माघ और राजशेखर कवियोंका उल्लेख किया है । इससे मालूम होता है कि वे उक्त कवियोंके काव्योंसे परिचित थे । प्रथम आश्वासमें उन्होंने इन्द्र, चन्द्र, जैनेन्द्र, आपिशल और पाणिनिके व्याकरणोंकी चर्चा की है । गुरु, शुक्र, विशालाक्ष, परीक्षित, पराशर, भीम, भीष्म और भरद्वाज आदि नीतिशास्त्र प्रणेताओंका भी उन्होंने स्मरण किया है । कौटिलीय अर्थशास्त्रसे तो वे अच्छी तरह परिचित थे । अश्वविद्या, गजविद्या, रत्नपरीक्षा, कामशास्त्र, वैद्यक आदि विद्याओंके आचार्यका भी उन्होंने कई प्रसंगोंमें जिक्र किया है। प्रजापति "प्रोक्त चित्रकर्म, वराहमिहिरकृत प्रतिष्ठा" काण्ड, आदित्यमत ( सूर्यसिद्धान्त ) निमित्ताध्याय, रत्नपरीक्षा, पतंजलिका योगशास्त्र', और वररुचि ० ११ व्यास, , हर प्रबोध, तथा कुमारिके उद्धरण दिये हैं। संद्धान्त वैशेषिक, तार्किक वैशेषिक, पाशुपत, कुलाचार्य, सांख्य, दशबल, जैमिनीय, बार्हस्पत्य, वेदान्तवादि, कणाद, कपिल, ब्रह्माद्वैत, अवधूत आदि दर्शनोंके सिद्धान्तोंपर विचार किया है । तथा मतंग, भृगु, भर्ग, भरत, गौतम, गर्ग, पिंगल, पुलह, पुलोम, पुलस्ति, पराशर, मरीचि, विरोचन, धूमध्वज, नीलपट, ग्रहिल आदि अनेक 1 1 १. “ तथा उर्व-मारवि भवभूति मर्तृहरि मर्तृमेण्ठ-कण्ठ- गुणाढ्य - व्यास भास-वोस कालिदास -बाण- मयूरनारायणकुमार - माघ - राजशेखरादिमहाकविकाव्येषु तत्र तत्रावसरे भरतप्रणीते काव्याध्याये...।" पृ० ११३ । २. “कैश्चिदैन्द्रजैनेन्द्रचान्द्रापिशलपाणिनीयाद्यनेकव्याकरणोपदिश्यमान । ” - पृ० ९० । ३. " प्रजापतिरिव सर्ववर्णागमेषु, पारिरक्षक इव प्रसंख्यानोपदेशेषु, पूज्यपाद इव शब्देतिलेषु, स्याद्वादेश्वर इव धर्माख्यानेषु, अकलंकदेव इव प्रमाणशास्त्रेषु, पाणिपुत्र इव पदप्रयोगेषु, कविरिव राजदान्तेषु, रोमपाद इव गजविद्यासु, रैवत इव हयनेषु, अरुण इव रथचर्यासु, परशुराम इव शस्त्राधिगमेषु, शुकनाश इव रत्नपरीक्षासु । - २ आश्वास, पृ० २३७ | ४-५-६-७. शा० ४, पृ० ११२-११३ । ८. श्राश्वा०५, पृ० २५६ । ९. सो० उपासका०, पृ०९ । १०-११. आश्वा० ४, पृ० ९९ । १२-१३. आश्वा० ५, पृ० २५१ - २५४ । १४. सो० उपा०, पृ० २-३-४ में सब दर्शनोंका विचार किया है। १५. सो० उपा०, पृ० ६६ । १६. आश्वा० ५, पृ० २५२-२५५ |
SR No.022417
Book TitleUpasakadhyayan
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2013
Total Pages664
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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